Thursday 25 February 2021

दिल्लगी कर ली

काफिया - ई
रदीफ - कर ली
विधा - गजल
2122 1212 22/112
मीत से थोड़ी' दिल्लगी कर ली ।
जिन्दगी यार फिर दुखी कर ली।

ठोकरों ने मुझे दिया हिम्मत ।
मंजिले हमसे दोस्ती' कर ली ।।

बात कोई अगर लगी दिल पर ।
जख्म पर फिर दवा तभी कर ली ।।

आरजू थी हसीन दिलबर हो ।।
जुस्तजू में 'आँखे नमी कर ली ।

शौक ऊँचे मकाम की थी' उसे ।
जब लगी चोट खुदकशी कर ली ।।

प्रेम नफरत स्वभाव में आया ।
सोच जैसी भी' जिस घडी कर ली ।।

ख्वाब पूरा नहीं किया रब ने ।
कुफ्र दिल में तभी घनी कर ली ।।

देश के संग क्यों किया धोखा ।
हसरते पाजी' क्यों बड़ी कर ली।

हाल देखो उषा जहाँ के अब ।
डूबती शाम सरवरी कर ली ।

*उषा की कलम से*
देहरादून



Monday 22 February 2021

मधुमय बसंत

विषय - बसंत
विधा गीत
दिन - सोमवार
दिनांक - 21.02.2021

उतर आया बसंत मोरे अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।
विरह वेदना भारी, छलके नयना ।।

घर पिछुआरे नित कूके कोयलिया ।
सबको मधुरिम गान सुनाती बगिया ।।
मुखरित है डाली डाली शुचि कलियाँ ।
लदे बोर पेड़ो में नव नव फलियाँ ।।
सौरभ पीकर बहके अलि तितलियाँ ।
पिय मग प्रीत छलकाती अखियाँ ।।
फिर से खिले सूर्ख गुलाब है अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।।

विरह वेदना भारी छलके नयना ...।
उतर आया बसंत ....

मधुबन रंग बिरंगे पुष्प निहारे
रोम रोम सुरभित कर रही बहारें ।।
लागे धरती पे यौवन खिला खिला ।
विषाद विहिन हृदय अब नहीं गिला ।
गेहूँ सरसों खेत करे गल बहियाँ ।
मदहोश भ्रमर छुपे देखो पँखुडियाँ ।।
चाहत सदैव उर प्रीतम पर मिटना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत म

बिहुँसकर चली मंद मंद पुरवैया ।
मलय संग ढलके सुधियों का आँचल।।
पिहू पिहू बोले पपिहरा बाग में ।
प्यासे नैन प्रियतम की बस लाग में ।।
राग रागिनी छेड़ रही मन वीणा ।
सजनी सजना के प्रेम चैन छीना ।।
घोल रहे बस जीवन में बहु रसना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

शूल संग फिर भी गुलाब मुस्काता
मिटकर भी जगत में खुशबू लुटाता ।
हमें सीखना गुलाब सा प्रेम लुटाना ,
दो पल के जीवन से खुशी चुराना ।।
मधुमय यह मधुमास नहीं उर छलना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

उषा की कलम से
देहरादून 

Sunday 21 February 2021

मृदु राग अरु ज्ञान दे शारदे

दिग्पाल छंद मृदु गति

*शारदे वंदन

221 212 2 221 2122
हे हंसवाहिनी शुभफलदायिनी सुविमले ।
पद्मासना लिए पुस्तक शोभती सुकमले ।
संसार गह महाश्वेता रूप बुद्धि विद्या ।
जो शूर वीर पाते हैं शौर्य शक्ति आद्या ।

माँ हस्त शुचि कमंडलु ,गल हार काँचमणि है।
सौम्या निरन्जना से सौभाग्य भी अक्षुण है ।
सुरवंदिता विशालाक्षी हर गेह में पधारो ।
हे शास्त्ररूपिणी पद्माक्षी जगत सवारो ।।

माँ शारदा दया कर मम ज्ञान दो सुमाता ।
तेरी कृपा मिले तो सम्मान काव्य पाता ।।
है आस माँ तुम्हीं से बस लाज आप रखना।
आई शरण तुम्हारी बस नेह मातु करना ।।

वीणा जभी बजाती झंकृत हृदय सुरों से ।
करती अराधना माँ आशीष दो करों से ।।
भंडार प्यार का तो तुझमें भरा भवानी ।
संगीत सुर मयी दो वरदान आप दानी ।।

मृदु राग भर कलानिधि मम कंठ हो पुनीता ।
वागीश ने कृपा की वो रच सके सुगीता ।।
पदकंज आज दासी, ले आस माँ पड़ी है ।
माता पुकार सुन लो दृग नीर की लड़ी है ।

हो जीव मुक्त ईर्ष्या से ज्ञान चक्षु खोलो ।
दो विश्व भव्यता वीणा पाणि प्रीत घोलो ।।
आलोक दिव्य भर दो संसार आज विमला ।
ब्राह्मी महाभद्रा वाणी में विराज मृदुला ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून 

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है

2122 1122 1122 22
काफिया - ई
रदीफ - रहती है

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है ।
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है ।।

जुल्म की खत्म हदें कत्ल हुआ रिश्तों का ।
पीर इतनी है कि अब नींद खुली रहती है।।

और इंसान परेशान हुआ जाये अब ।
कितने खतरों में घिरी अपनी गली रहती है ।।

ये निगाहें ही करें रोज ही छलनी उसको ।
घर में रहती है मगर फिर भी डरी रहती है ।।

शर्म बेची है निजी स्वार्थ हुआ है हावी।
क्यों बुराई ये तेरे दिल में घुसी रहती है ।।

हद से बाहर तू कभी भी नहीं होना जालिम ।
राख में भी तो कहीं आग छुपी रहती है।

ख्वाहिशें खुशियों' की रखते हैं जमाने में सब ।
पर उषा बेरुखी' से रोज़ दुखी रहती है ।

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है

उषा झा देहरादून 

Sunday 14 February 2021

आह में मधुकर

आनंद छंद ये मात्रिक लय युक्त छंद है ।
2122 212

रात देखो चाँदनी।
नाचती है मोरनी ।।
झूमती कलि बाग में ।
आज भँवरे राग में ।।

चातकी सी नैन में ।
आस सजती रैन में
स्वर्ण किरणें भोर में
मोद मन आलोक में।

तितलियों की चाह में
भृंग सारे आह में ।
हो कली अब अंक में ।
रात मधुकर पंक में ।।

भ्रम का मन अंश हो ।
वेदना के दंश हो ।
मन वियोगी द्रोह में ।।
स्वप्न खोये शोर में

रात काली भी ढले
प्रेम सच्चे बस मिले
धीर धरते जो सदा
शूल दिल से हो जुदा

*उषा की कलम से

Saturday 13 February 2021

आ जाओ मनमीत



गीत 
16/ 14

जम रही धूल अब सुधियों के,ले  लो मुझे पनाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में ।।
 
जीवन दीया के मैं बाती ,,प्रियतम तुम  घृत बन जाना ।।
आस न बुझने देना अपना, प्रेम दीपक इक जलाना ।।
मिलके सुख दुख सिर्फ बाँट लूँ ,हो नेह छाँव बस अँगना 
निशि दिन सजन प्रतीक्षा तेरी, प्रेम सुधा मुझको चखना ।
चाहत दिल में बस यही चलूँ ,संग  प्रीत  के  राहों में  ।।
जम रही धूल अब सुधियों के ले लो मुझे पनाहों में ।।

प्रेम अगन में जलती निशि दिन,आँधी बुझा नहीं डाले ।
डरती दुनिया के नजरों से,, दिल जग में सबके काले।।
आ थाम एक दूजे के कर ,प्रणय धार  में  बह  जाए  ।।
 विरह वेदना भारी दिल में , नैनन  गगरी  भर जाए  ।।
तड़प रहा तन मन बरसों से, छलके पीर निगाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में।

नारी तो बाती होती है,, सदा पुरुष  ज्वलन  शक्ति  है।
एक दूजे बिन हम अधूरे,,द्वय उर भरे आसक्ति है  ।।
 संग पिया हो चमके अपने, निशि दिन सितारे आसमां  ।।
प्रीतम यादों को रौशन करना ,गिन रही तारे आसमाँ  ।।
 छोड़ गए जबसे साजन हो,नयन बहे इन माहों में  ।।
जल रही मनमीत सदियों से ,दम निकले हैं आहो में ।

प्रेम सुधा नित झर झर झरते,शुचि नेह पथ प्रशस्त करे ।
नर बिना नारी है अधूरी,,  बिन प्रिये दृग निर्झर झरे  ।।
युग युग से प्रियतम भटक रही , तेरी करूँ बस प्रतीक्षा  ।।
फैला कर आँचल माँग रही,प्रीत दान की अब भीक्षा ।
 सत्य सृष्टि द्वय हृदय मिलन से,उर कली खिले बाँहों मे।

जम रही धूल अब सुधियों के , ले लो मुझे पनाहों में  ।।
उषा की कलम से 
देहरादून उत्तराखंड़

मैं उषा झा  यह घोषणा करती हूँ कि यह मेरी स्वरचित, मौलिक ,

महि पर पधारो रघुवर

योग छंद
12/ 8 अंत 122 से अनिवार्य

हे रघुनंदन महि पर , आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो , लाज बचाओ ।

शत्रु घनेरे छलते , आज सुता को
रावण रूप बदल के ,हरे सिया को ।
दानव बने मनुज ये, शोणित पीते ।
संहार करो प्रभु ये, क्यों कर जीते ।।
जग को मर्यादा का , पाठ पढाओ ।

हे रघुनंदन महि पर, आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो,लाज बचाओ।

राम पिता की आज्ञा ,से वन धाये ।
ऐसे पूत कहाँ इस, जग पितु पाये ।।
तज गए कलयुगी , पूत प्यारे ।
वृद्धाआश्रम बैठे , बाँट निहारे ।।
बहते अश्रु मातु के, मान दिलाओ ।

माँ बहनों की अब तो,लाज बचाओ।
हे रघुनंदन आज महि पर,आज पधारो।

बनते बैरी भाई , रिश्ते भूले।
टूटी मन की शाखें ,कैसे फूले।।
छलते दीनों को ये, हुए अभागे ।
स्वार्थ हुआ हाबी ,नीति त्यागे ।।
रोते दीन हीन के, धीर बँधाओ ।

हे रघुनंदन महि पर , आज पधारो ।
माँ बहनों की अब तो , लाज बचाओ ।

*उषा की कलम से*
देहरादून

Friday 12 February 2021

ऋतु राज आए

2122 2122

कल्पनाएँ गढ रहा मन
द्वार पे ऋतु राज आए ।

हो गई कुसमित धरा है ।
प्रेयसी का जी भरा है ।।
वाटिका लगती सुवासित ।
देख जड़ चेतन प्रभावित ।।
जागती नव कामनाएँ ।
द्वार पे ऋतु राज आए ।

वल्लरी नव मस्तियाँ है ।।
नृत्य करती तितलियाँ हैं ।
रागिनी मृदु मोद भरती ।
प्रीत से नित बोध करती ।।
झूमती है हर दिशाएँ ।
द्वार पर ऋतु राज आए।
प्रेम के सौगात लाए ।।

तरु लता भी खिल खिलाती ।
गीत मृदु कोकिल सुनाती ।।
घोलती रसना हिया में ।
आस उरजित है जिया में ।
लुप्त सारी चेतनाएँ ।।
द्वार पे ऋतु राज आए ।
प्रेम के सौगात लाए ।।

ओढ धानी चूनरी को ।
महि लजाती रूपसी को
तुंग दिखती हरितिमा है ।
पास आई प्रियतमा है ।

शशि निशा भी मुस्कुराए।।
प्रेम के सौगात लाए ।।

संग पिय मधुमास में हो ।
स्वप्न सच अब आज से हो।।
है विमल यह प्रीति जग में ।
सार जीवन रीति जग में ।।
प्रेम के सौगात लाए ।।

द्वार पे ऋतु राज आए ।


*उषा की कलम से*
यह मेरी (उषा झा) स्वरचित , मौलिक , प्रकाशित ,
अप्रेशित रचना है ।





Monday 8 February 2021

मिश्री की डली हिन्दी

मीठी डली लगे मिश्री सी ।
मृदुल सरस मन भावन हिन्दी।।

केसर चंदन की ये बिन्दी ।
मस्तक सजा रहे भारत का ।।
बंधन नही किसी धर्म पंथ का ।
बनी सदा पहचान हिन्द का ।।
करे नेह हर इक भाषा से ।
मौन रहती आंग्ल भाषा से ।।
घटा रहे संतान मान क्यों? ।
राष्ट्र भाषा पर अभिमान हो ।

वेद ऋचा सी पावन हिन्दी ।
मृदुल सरस मन भावन हिन्दी।

गौरव गान युगों से गाती ।
हिन्दी जग में शान बढाती ।।
अक्षुण रहे धरोहर सम्मान दो ।
हिन्दी को नवल पहचान दो ।।
निकली संस्कृत के गर्भ से ।।
भारतीय प्रीति रख संस्कृति से ।।
हिन्दी हर भाषा की जननी    ।
मिले अधिकार लक्ष्य हमारा ।
होगा अब विस्तार तुम्हारा ।।

छंद रचो नव गायन हिन्दी ।
मृदुल सरस मनभावन हिन्दी।।

*उषा की कलम से*
देहरादून उत्तराखंड

बसंत आगमन

विधा- शृंगार छंद

धरा ने कर ली है श्रृंगार ।
बसंत पुलकित खड़े हैं द्वार।।
रागिनी उरजित उर आगार ।
प्रीत मुखरित लगता संसार ।।

हृदय में अजब हुआ एहसास
सजन से मिलने की है प्यास।
पावनी बरसे  मृदुल फुहार  ।
हिया के बजते हैं हर तार  ।।
 
प्रेम आसक्ति भरे  मधुमास।
जगत रति मदन के हुए दास ।
खिले हैं शुचित  हृदय में  फूल ।
तभी मन भूल गए हैं शूल  ।।

नैन के कलशी छलके आज।
दबे हैं  उर में  कितने  राज ।।
बताना तुमको कितनी बात।
सपन सजना हो मदीर रात।।

मिलन मधुरिम की निशि दिन आस ।
अमा  देती  बस उर संत्रास ।।
तृषित मन चाहे प्रियतम दर्श  ।
अधर कर सुधा स्नेहील स्पर्श।।

उषा झा देहरादून

मुदित आँगन किलकारी से

गीत

सूना आँगन किलकारी से, मुदित हुआ।
एक सितारा पाकर आँचल , शुचित हुआ।।

मीठी लोरी सुनकर जिसको , नींद लगे।
उन्हें देखने , मातु पिता के , नैन जगे।।
थपकी देकर आँचल में जो , सबल हुए ।
जिम्मेदारी ,से वही पूत , मुकर गए।।
गुमसुम माता , पितु उदास नित ,व्यथित हुआ ।
पाकर आँचल .....

पुत्र बिना अब, प्यासी अँखिया तरस रही ।
ममता मोती नित बरसाती, बिलख रही ।
उन बिन जीना, मुश्किल लगता , छोड़ गए ।
मातु पिता से रिश्ते क्यों कर , तोड़ गए ।।
ठूठ साख हैं ,कब वो पुष्पित ,फलित हुआ ।
पाकर आँचल एक....

सूना आँगन, खटिया माली, विकल हुए  ।
हैं बेगाने, छाँव नेह के, विलग हुए।
क्यारी सूखी, उन बागों की , नीर बिना ।
टूटी लाठी,देख कमर की ,धीर बिना ।
किया उपेक्षित संतति क्यों कर ,भ्रमित हुआ ।।

सूना आँगन, किलकारी से, मुदित हुआ
पाकर आँचल एक सितारा , शुचित हुआ।।

*उषा की कलम से*
उषा झा देहरादून

Tuesday 2 February 2021

याद

स्मित मुस्कान अधर देकर विदा साँझ
एकाकी जीवन बस सुधियों की आँच।
स्निग्ध स्नेह की आभा फैली क्षितिज।
मेघ आसाढ का निर्झर झर रहा आज।

ओसारे पर लेटे रूग्न तन सोच रहा ।
हृदय विषाद घनेरे ये मीत लगे बदरा ।
जैसे हृदय टीस ले उमड़ घुमड़ रहा।।
भावित स्वप्न विहृवल मन कर रहा ।।

आकुल दादूर प्रेयसी को पुकारता ।
विरह व्याकुल मोर वन में नाचता ।।
प्रिय संदेश लिए चंचल बदरा बरसता।
अंतस् में मृदुल स्मृति हृदय मचलता ।

घन गर्जन से कम्पित उर वसुधा के ।
उतरे गगन लिए शत धार सुधा के।।
मृदुल राग अब श्वास श्वास में घुलती।
मंद सुगंध तन मन प्लावित वसुधा के।

सावन भादव मन सुकोमल भाव भरे ।
विरही उर एकाकी आहत अलाव जरे ।।
चपला चमकी पल भर को आस सजी
सूखे उर में प्रतिपल बस प्रेम जलाव भरे ।

*उषा की कलम से*
देहरादून