Wednesday 26 May 2021

सावन अगिन लगाए

हृदय प्रीत से भरा सखी री, मेरे प्रिय परदेश सिधाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

दमके दामिनी विकल निशीथ,मनुवा मोरा धड़क रहा है ।
आई कैसी रात सुहानी ,अंग अंग बस फड़क रहा है ।।
आओ सजन पास आ जाओ , कारी रैना मुझे डराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

बागों में कोयलिया कूके , जियरा सजन प्रणय में भूले ।
सखियाँ मिलके कजरी गावे, पिया संग सब पींगे झूले ।।
मिलन पिपासा नदिया बाढ़े, नैनन बरबस नीर बहाए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

गोरे कर मेंहदी रची है, शुचि शृंगार पिय को रिझावे ।
खो गया चैन मोर हिया के,तुम बिन मुझको नींद न आवे।
आस चकोरी मिलन सखी री,आकुल नैना भर भर आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

जा रे बदरा अब जिय न जला,विरहा दंश लगे बहु भारी
ओ री पवन पियु को बुलाओ,किछु न भावे विरह की मारी।
आस हृदय के टूट रही है , मोर पिया घुरि देश न आए।
घनन घनन घन मेघा बरसे बैरी सावन अगिन लगाए

ज्यूँ ही पधारे पियु सखी री,मन आंगन में खुशियाँ बरसे ।।
सच हो सारे मोर सपनवां, प्रीत सुहावन उर में सरसे ।।
आलिंगन में सजन झुलाए ,उर के सारे दुख बिसराए ।
घनन घनन घन मेघा बरसे ,बैरी सावन अगिन लगाए ।।

*प्रो उषा झा रेणु*
मौलिक ( प्रकाशित )ऑ
देहरादून

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