Tuesday 25 May 2021

सबरी उर रघुनंदन

विधा - मोदक छंद
विधान - 4 ×भगन
गणावली  211 /4
211   211   211  211

व्याकुल नैन करे नित बंदन।
थे शबरी उर में रघुनंदन ।।

राम सिया मुख दर्शन हो कब।
पंथ निहार रही शबरी  अब ।।
जीवन श्री चरणों पर अर्पित ।
हो तप पूरण वो नित सोचत ।।
जन्म सुपावन हो हरि दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ..।

राम सिया दृग देख पधारत।
आस भरे उर हर्षित नाचत।
भाव भरे हिय बैर चखावत  ।
प्रेम अनूप लगे मन गावत ।।
पाप मिटे करते मुख दर्शन ।
व्याकुल नैन करे नित बंदन..।

राम सिया भव बंधन काटत ।
मुग्ध जिया बस आज निहारत।।  
मोदित है मन  नैन जुड़ावत ।
हर्ष भरे, मन नीर  छिपावत ।
 राह दिखावत हैं दुखभंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन.. ।

श्यामल रूप लगे मन भावन ।
ईश धरे पग शबरी घर पावन ।।
राम सिया जप के कटते दिन ।।
जन्म सुकारथ है अब भीलन ।
ज्यूँ रघुवीर बसे दृग अंजन ।।
व्याकुल नैन करे नित बंदन ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखं

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