Thursday 27 May 2021
पीर नदी की
सागर से मिलने को बीहड़, डगर नदी बलखाती ।
सच करने को सपने वह तो, दर दर ठोकर खाती
राह कठिन संकल्प नदी हिय,उदधि मिलन बस मन में ।
पर्वत की बेटी शूल लिए ,बहती निर्जन वन में ।
बाँटे राही दुख सुख गर तो, खुश हो प्यास बुझाती ।।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती ।।
चोट शिला से जब जब खाती, शोर बहुत ही करती ।
पीर भरे उर गीत सुनाती,कल कल करती बहती ।।
सागर से मिलने के खातिर , हर दुख वह सह जाती ।
सच करने को सपने वह तो ,दर दर ठोकर खाती ।।
सींच खेत खलिहान मुदित वह , बिन नीर नदी रोती।
क्षुब्ध नदी दोहन से अपने ,अस्तित्व नित्य खोती ।।
प्रदुषित जल जलयान चलाया, बंधन बस तरसाती ।।
सच करने को सपने वह तो , दर- दर ठोकर खाती ।
अपने संग बहा ले जाती , पाप सभी के गंगा ।
घायल उर मल मूत्र डाल के ,लेते मानव पंगा ।
पन बिजली से सूखी नदिया, बूँद बूँद ललचाती ।
सागर से मिलने को बीहड़ , डगर नदी बलखाती
बाँध पोटली हिम्मत वाली, तटिनी चलती राहों में ।
बढ जाती परमार्थ कर पियु , सपन सजे बाँहों में ।।
ढोती संग जडी बूटी वह, सींच खेत हर्षाती।
सागर से मिलने को बीहड़ ,डगर नदी बलखाती ।।
*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून उत्तराखंड
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