जीवन का भी
ये एक दौर है ..
हर तरफ शुकुन
ही शुकुन ..
फिर भी अजीब
सी तन्हाई है ..
एक वो भी दौर था
जब एक एक पल
शुकुन के लिए
तरस जाती थी ..
हमेशा भागम भाग
का आलम था ..
फिर भी बच्चों को
लड़ते झगड़ते
हँसते बोलते देख
मन प्रफुल्लित रहता..
घर बिखरा रहता
फिर भी रौनक रहता ..
सच में औरतें
अजीब होती हैं ..
जब बच्चे छोटे रहते
तो लगता जल्दी जल्दी
बढ जाए ..
लेकिन जब बच्चे बड़े
होकर अपने मंजिल
की ओर बढ़ जाते ..
तो खुशियाँ अपार होती..
पर खालीपन सताने लगती
और जी करता बच्चे
छोटे ही रहते तो भले थे..
सच में औरतें अजीब
होती है ..
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