विजयादशमी है
उत्सव दानवों के
दमन का ..
सत्य की विजय
असत्य की हार
है सुनिश्चित ..
मद और बल में
चूर दानव न करता
यकीं पराजय का ..
धरती पे तांडव
नृत्य करता वो
अपराधों का ..
जनमानस जब
त्राही माम मचाते
तब लेती जन्म
माँ जगदम्बे करने
संहार दुष्टों का ..
देर से ही होता
सत्यमेव जयते ..
माँ जगदम्बे ले लो
आप जन्म दुबारा ..
पापियों ने मचा
रखा है धरती पर
घोर अनैतिकता का ..
भाई भाई एक दूजे के
हो रहे हैं खून के प्यासे
बढ़ गया है ईर्ष्या द्वेष
आपसी षड्यंत्रों का ..
व्यभिचारी और अधर्मी
दूषित कर रहे समाज को
करो नाश इन असूरों का
माँ बहा दो धारा प्रेम का ..
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