Monday 19 March 2018

अर्धांगिनी

लगभग रात्रि के दो बज रहे थे.. एकाएक मोबाइल की घंटी बजी मैं और मेरे पति आशंकित हो कर एक दूसरे का मुँह देखने लगे । फिर उधेड़ बुन में हिचकिचाते हुए मेरे पति ने फोन उठाया । उधर से पड़ोस के ही शर्मा भाई साहब कांपते स्वर में  बोले डॉ साहब मिसेज को साँस लेने में तकलीफ हो रही है , थोड़ा आप देख लेते ..मेरे पति ने कहा जरूर अभी आते हैं ।
उन्होंने अपना बैग स्टेथो वगैरह लिया और चले गए ..
डॉ साहब के जाने के बाद मैं सोचने लगी पता नहीं क्या हुआ?
शाम को ही देखा था भली चंगी थी
इतने में डाँ साहब आ गए बोले गाड़ी का चाभी दो भाभी जी बहुत सीरियश हैं । मुझे धक्का सा लगा ..मैं सोते बेटे को अकेले ,खुले घर छोड़कर चली गई ..
 डॉ साहब को शर्मा भाई साहब ने कहा आप जल्दी से अंदर आ जाईये ..मैं भी पीछे पीछे चली गई ..वहां का नजारा देख
रोंगटे खड़े हो गए ..सब कुछ खत्म हो चुका था ..
भाभी जी ओंधे मुँह लेटी थी और मुँह से लार निकल रहा था ।
डॉ साहब ने कहा उनको कार्डियक अरैस्ट हुआ जिसमें इलाज के लिए दस मिनट भी मौका नहीं मिलता  ...
    शर्मा भाई साहब अपनी पत्नी के साथ इतने बड़े कोठी में रिटायर मेन्ट के बाद अकेले रह रहे थे ।बच्चे बाहर सर्विस करते हैं ..
भाभी जी काफी हेल्दी थी । मेरे पति डॉ साहब और शर्मा भाई साहब ..दोनों से भाभी जी हिलेगी भी नहीं ..ये सोचकर  मैं पड़ोस से बुलाके लाई और लोगों को ...उनके तसल्ली के लिए डॉ साहब ने सारे परीक्षण किए  .. फिर वो दबे जुबान से बच्चों को फोन करने के लिए बोल दिए .. बेचारे शर्मा जी कांपते स्वर  में बेटे बेटी को फोन करने लगे ..कहीं पढ़ा था मैंने गैर हाजिर कंधे वो हकीकत में आँखों के सामने था...सब लोग आए थोड़े
रूक के चले जाते ।बच्चों को आने में समय लगा.. बेचारे शर्मा जी शोक में डूबकर भी अकेले ही सब कुछ कर रहे थे ..रो रो कर सब को कहते .. सही मायने में अर्धांगिनी थी वो.. मेरे कंधे से कंधा मिला कर हर सुख दुख में साथ दी .. बिन कुसुम के कैसे जियुँगा ...
 

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