रामू बहुत ही मायूस है ।उसके खेत जल के बिना सूख रहा है।मन ही मन वो सोच रहा, अगर फसल की पैदावार अच्छे से नहीं आएगी तो हम सब साल भर कैसे गुजारा करेंगे ? खेती ही एकमात्र सहारा है ।परिवार के सारे खर्चे, बच्चों की पढ़ाई सब कुछ तो इसी पर निर्भर है !!
उसके पड़ोसी तो धनी है हर खेत में बोरींग लगा रखा है । खेतों की सिंचाई अच्छे से करता ..बदले में धरती माँ भी खूब उपजती । आजकल सब कुछ में पैसों की ही जरूरत होती है । बगैर पूँजी के तो खेती में भी हाथ ही मलना पड़ता .. गरीब किसानों का हाथ बिन पूँजी के खाली ही रह जाता !!
रामू के पड़ोसी मोटर भी लगा रखा है ..जितने भी पानी की खपत होती, मोटर से खींच सिंचाई कर लेता ।बिजली बील कितना ही आए, कोई फर्क नहीं पड़ता ।
हर जगह पैसे वालों की ही तूती बोलता है ।
आवश्यकता पूरी होने के बाद भी वो जरूरत से ज्यादा
पानी बरवाद करता .. ये देख रामू को गुस्सा भी आता और खुद पे तरस भी आता ।
एक दिन वो हिम्मत करके गया उससे कहने..देखो भाई पानी क्यों बहाते हो? बिन पानी के मेरे क्यारियाँ सूख रही है ..थोड़ा थोड़ा मुझे भी पाइप लगाने दोगे तो मेरा भी भला हो जाएगा !!
लेकिन आजकल लोग उपदेश देने में देरी नहीं करते परंतु नेकी करने में पीछे हट जाते हैं ..
बेचारे रामू अब आकाश की ओर टकटकी लगाके रोज देखता । क्या पता ऊपर वाले को तरस आ जाए? बरसा दे बूँदें...
मिल जाए सूखे खेतों को पानी ..
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