विथा गीत - 16/ 14
नम चदरिया एहसासों की, चाँदनी रैन उदास है ।
नैन पिया बिन हुए बावरे,बिखर गयी सभी आस है।
कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े, मदन रति को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें,नयनों मे नव स्वप्न लिए।
फूली सरसों अबआशा की, पोर-पोर में नेह भरी ।
तन मन अरुणाई वासंती ,प्रकृति हुई है हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है।
नम चदरिया एहसासों की...।।
पीले -श्वेत पहन कर अंबर, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल-कंठ सुधा बरसे हैं , मँजीरा लेकर टोलियाँ ।
राग-अनुराग पले हृदय में , बसंत उतरे अब अँगना ।
लगे सुहावन दृश्य सभी अब , उन्मादित सजनी सजना।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास -परिहास है।
नम चदरिया एहसासों की...
इन्द्रधनु जब गगन में छाया ,चहके हृदय खग वृन्द के ।
मन- आंगन भी खिला खिला है, बाण चले कामदेव के।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन में , अब प्रियतम के भाग जगे ।
आये द्वार मधुमास मधुरिम ,प्यास प्रीत की नैन लगे हैं ।
निशि- दिन नैना अब बहते हैं, प्रीतम नहीं बहुपाश हैं।
नम चदरिया एहसासों ....
छटा निराली सभी ओर है, सौरभ से सब सुमन लदें।
घायल -उर है, मदन चाप से, तोड़ दिए भ्रमर सब हदें।
रंग उमंग विहीन बिना तुम , आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।
नम चदिरया एहसासों की , चाँदनी रैन उदास है ।
नैन पिया बिन हुए बावरे ,बिखर रहे सब आस हैं।
उषा झा देहरादून