Friday 31 January 2020

नम चादरिया एहसास की

विथा गीत - 16/ 14

नम चदरिया  एहसासों की, चाँदनी रैन उदास है ।
नैन पिया बिन हुए बावरे,बिखर गयी सभी आस है।

कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े, मदन रति को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें,नयनों मे नव स्वप्न लिए।
फूली सरसों अबआशा की, पोर-पोर में नेह भरी ।
तन मन अरुणाई वासंती ,प्रकृति हुई है हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है।
नम चदरिया एहसासों की...।।

पीले -श्वेत पहन कर अंबर, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल-कंठ सुधा बरसे हैं , मँजीरा लेकर टोलियाँ  ।
राग-अनुराग पले हृदय में , बसंत उतरे अब अँगना ।
लगे सुहावन दृश्य सभी अब , उन्मादित सजनी सजना।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास -परिहास है।
नम चदरिया एहसासों की...

इन्द्रधनु जब गगन में छाया ,चहके हृदय खग वृन्द के ।
मन- आंगन भी खिला खिला है, बाण चले कामदेव के।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन में  , अब प्रियतम के भाग जगे ।
आये द्वार मधुमास मधुरिम ,प्यास प्रीत की नैन लगे हैं ।
निशि- दिन नैना अब बहते हैं, प्रीतम नहीं बहुपाश हैं।
नम चदरिया एहसासों  ....

छटा निराली  सभी ओर है, सौरभ से सब सुमन लदें।
घायल -उर है, मदन चाप से, तोड़ दिए भ्रमर सब हदें।
रंग उमंग विहीन बिना तुम , आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।

नम चदिरया एहसासों की , चाँदनी रैन उदास है ।
 नैन पिया बिन हुए बावरे ,बिखर रहे सब आस हैं।

उषा झा देहरादून 

Wednesday 29 January 2020

समृद्ध हमारा गणतंत्र

#दोहे छंद
🇮🇳गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुशुभकामनाएँ 🇮🇳

देश आजाद हो गया , हुए वीर कुर्बान ।
देश शक्ति सम्पन्न हो, हर दिल के अरमान
आजाद हिन्द स्वप्न नव, बने नये कानून ।
भारतीय हर्षित हुए ,  मन में बहुत जुनून ।।

सैनिक के कठिन तप अब , रहे सदा आबाद ।
फर्ज निभाना है हमें, देश न हो बरबाद ।।
नेता अंधे स्वार्थ में , बने फ़िरक़ा परस्त ।
भारत के टुकड़े करें, जन जन के हक जप्त ।

वोट की राजनीति में,  फँसे सभी मासूम ।
जाति पाति विष बो रहे, हो सब को मालूम ।।
मातु भारती रो रही , जब जब बहते रक्त ।।
लाज नित्य ही लुट रही , क्यों सरकार असक्त ।।

सदियों भारत विश्व गुरु , अद्भुत है इतिहास ।
राम कृष्ण की ये धरा, यहाँ देव का वास ।।
गौतम महावीर लिए , युग पुरूष अवतार ।
शीश हिमालय चुम रहा , बहे गंग की धार।

संस्कृति सभी अक्षुण  रहे ,बढ़े  देश का मान ।
काम सभी ऐसा करें , हो सबको अभिमान ।।
लोकप्रिय कानून बने , संतुलित संविधान ।
सबको समान हक मिले, रहे दीन मुख  गान ।

विश्व में भारत का  ही , समृद्ध हैं गणतंत्र ।
कोई कमजोर न करें , कभी देश का तंत्र ।।
शान भारती की बढ़े , हो मुख पर मुस्कान ।
राष्ट्र अखंड! तभी सफल , शहीद के बलिदान ।

मीठी तुतली बोल से,   गा रहे राष्ट्र  गीत ।
देश फक्र उस पर करे , हृदय लिए वो जीत ।।
देश सुरक्षित हाथ में , वही देश के नींव ।
बच्चे माँ की लाज है , करते नहीं अजीव ।

उषा झा स्वरचित
उषा झा देहरादून 

सरस्वती वंदना


सकल जगत सुबुद्धि प्रदायिनी , नमामि माँ सरस्वती ।
चीर तमस दो ज्ञान दाहिनी ,  मूढ़ मति बने ज्ञानवती ।
शुचित माँ कलुषित-हृदय भी हों, सर्वत्र, गंगा ज्ञान बहे ।।
सत्य, दंभ से नहीं पराजित , ईर्ष्या द्वेष न हृदय रहे ।।

दूषित सोच का प्रादुर्भाव मम , उर हो कभी नहीं माँ 
चलूँ सुपथ पे, भटकूँ कहीं ना! वर दो हंसवाहिनी माँ ।।
हो प्रेम दया करुणा दिल में ,खत्म भ्रष्ट मनोवृत्ति हो ।
यत्र-तत्र समष्टि वसुन्धरा , मानव कोई न व्यथित हो ।।

विषय विकारों में है लिप्त मन निर्मल शुभ विचार दो ।
वचन झरे,मुख से मीठे ही , कोकिल कंठ दे तार दो ।।
हो अन्याय न संग किसी के, सब तृषा हिय की नष्ट हो ।
वर दे कमल सिंहासिनी माँ! चीर प्रकृति का मंजुल हो ।।

अभिशप्त न हो कोई निर्धन , शिक्षा सबको मुफ्त मिले।
कुरीतियों के प्रतिकार हेतु , यह लेखनी चलती चले ।।
भाव अनुपम विद्यादायनी, रचती रहे यह तूलिका  ।
छंद -सृजन हों सदा पुरुष्कृत, मात दान दे विद्या का ।।

उषा झा देहरादून 

वीर तू उठा मशाल


विधा- पंञ्च चामर छंद

 121  212   121   212   121  2
निसार प्राण मातृभूमि को, लहू पुकारती ।।
निगाह दुष्ट, राष्ट्र पे पड़े न ! माँ कराहती ।।
बिना प्रयास के बढ़े न स्वाभिमान देश की ।
सलाम राष्ट्र प्रेम! शूर वीर भेंट प्राण की ।।

डटे रहे शूर वीर छद्म युद्ध देख वो डरे नहीं ।
झुके न मान देश का शहीद हो गए वहीं ।।
सुखी रहे सभी, दुखी न भारती मिले कभी
शहीद देश के लिए मिटे,न भूलना सभी ।

घटे न मान मातु का उठा कृपाण तू जरा ।
करो विनाश शत्रु का रहे सुखी वसुन्धरा  ।।
उठा मशाल , नाश दुष्ट का, करे प्रवीर है।
सुनो गुहार मातु की, बहा  लहू, अधीर है ।।

दिखा दिया शहीद राह देश को, सलाम है ।
उबाल रक्त का घटे नहीं, हिया हुलास है  ।।
लगे न दाग मातु पे  झुका न शीश  वीर तू ।
छुपे न दुष्ट एक भी करो तलाश  वीर  तू ।

गुलाम बेड़िया खुली, मिली हमें  स्वतंत्रता ।
मिली हरेक को खुशी , रहे मही विलासिता  ।।
हुए शहीद पुत्र, मातु  गर्व से   निहारती   ।
उजास कर्म की, ढले न सूर्य वो, दुलारती ।

दया करो दया निधे नही रहें मही दुखी ।
खिले कली, खुशी मिले ,रहे जहां तभी सुखी ।।
धरा रहे हरी भरी, यहाँ बिखेर तू खुशी 
नहीं कहीं विनाश हो, भरो वितान तू हँसी ।।

उषा झा देहरादून ठ

Sunday 26 January 2020

मन के भीतर कोलाहल

भीतर मन के कोलाहल है, कलयुग आ गया घोर है
देख आज मुरझाया मन है ,, नैन भींगोएँ कोर हैं  ।।
कुत्सित पापी घूम रहे हैं,  बदले अपना रूप सभी  ।
नहीं सुरक्षित दिल के टुकड़े, कैसा आ गया दौर है।। 

कोमल जान जुर्म नर ढाता, अब दुख नहीं हमें सहना ।
दंश चुभाते प्रतिपल मन को, धीरज नहीं हमें धरना ।।
बना खिलौना नारी जीवन, शक्ति रूप तू समझ उन्हें ।
नर  ने जीवन  खेल बनाया ,,अब प्रतिकार हमें करना ।।

जीवन के पधरीले पथ पर अब, तुमको बढ़ते जाना है ।
घना घिरे तम चाहे हो पथ पर , पार तुम्हें ही जाना है  ।।
कठिनाई में भी खुद हीअपनी, प्रशस्त करना मंजिल को ।
सूर्य के प्रकाश से एक दिन तो, जिन्दगी जगमगाना है ।

उषा झा देहरादून 

सुवासित मन आंगन

जब यौवन की कलियाँ चटकीं, अलि मकरंद की चाह में 
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है , आह में ।

गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल, मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, नव नव नित्य सवेरा है ।

पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित ! देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।

जब लिए थाम, तुम हाथ प्रिये  ,छूट न पाये , साथ कभी ।
पगी प्रीति दिन रैन हृदय में, हो न विरह की रात कभी ।।
घड़ी मिलन की बेला अनुपम, कटे प्रेम में यह जीवन ।
जीवन- संध्या संग पिया हो, नहीं मिले आघात कभी ।।

उषा झा देहरादून

Wednesday 22 January 2020

शब्द ब्रह्म है ओम

विधा- सरसी छंद
16/11 (गाल)

शब्द चाशनी में लिपटे हों, दिल को लेते जीत ।
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत ।

 नाद सृष्टि में यही निहित है,,,शब्द ब्रह्म है ओम ।
कटु बोल हैं कोप के कारण,, बोल मधुर झरे सोम ।
शब्द- शब्द के  बने योग से ,, सभी धर्म के ग्रंथ ।
अलग अलग है रूप शब्द के, अलग अलग है पंथ।
कुटिल -बोल से द्वेष बढ़े हैं ,,मधुर शब्द से प्रीत
भाव भरो मधुरिम....

मधुर बोल से हृद परिवर्तन ,,विष- वाणी दे पीर ।
कड़वी भाषा करे व्यथित जब ,,नयन भरे बस नीर ।
शीतल छाँव, मधुर वाणी दे, खिले हृदय फिर फूल ।
दुख हो ,सुख हो, सब मौसम में, मनुज रहे अनुकूल ।
बहे ज्ञान गंगा वाणी में ,,,, जग की बदले  रीत ।
भाव भरे हो मधुरिम..

शारद की वीणा से निकला , यह अनुपम उपहार ।
मुरली की धुन में मुखरित है ,, शब्द प्रेम श्रृंगार ।
नाप तौल कर बोल मनुज तू ,नहीं हो भूल चूक ।
पट्टी बाँध अज्ञान की तू , बैठ न बनकर मूक ।
घायल शब्द करे अंतर्मन,,, होते शस्त्र प्रतीत ।
भर मिठास, वाणी में अपने ,,गा मधुर प्रेम के गीत।

शब्द चाशनी में लिपटे हो, हृदय सभी ले जीत ।
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत ।।

उषा झा देहरादून

भव तारिणी अम्बे


विधा - श्री गीतिका
2212    2212  2212  2212

माता क्षमा की हूँ सदा भूखी मुझे आशीष दो।
दुर्गा तुम्हारे द्वार आई आस से, माँ दर्शन दो ।।

जननी सुधी लें कौन है संसार में , जाऊँ कहाँ 
है पाप की झोली भरी, मैया तुझे, पाऊँ कहाँ

लिपटी रही माया हृदय कैसे करूँ मैं अर्चना
हे मात तू मेरी बने,आई भरे उर रंजना

पट्टी पड़ी थी नैन पर्दा  भूल पे  डाली रही
वरदान से झोली भरो ओ माँ रहे खाली नहीं
     
हे भगवती तू मुक्ति दे तेरी शरण में पापी पड़ी
हूँ आस की दीपक लिए ,कर जोड़ है दासी खड़ी

जो तू रहे ईष्या लिए, पर हीत कुछ करते कभी
पछता रहे क्यों अब, समय आता नहीं वापस सभी

उषा झा देहरादून 

पिया बिन तरसे नैन

विधा- मदिरा सवैया 
211/ 8  अंत गुरू( 2 )

211  211 211 211 211  211 211   211 2
झूम रहा ब्रज रास रचा वत कृष्ण बजावत है मुरली
नाच रहे सुन के धुन,  प्रेम रिझावत अद्भुत है मुरली 
खो कर होश सभी घर द्वार बिसार गई दिल है मुरली
आँचल है ढलका उलझे लट गोपन की बल है मुरली

माधव क्यों हिय नित्य जलावत गोपिन नीर बहावत है
बेबस प्रेम किया, अखियाँ तरसे सब राह निहारत है 
धेनु सखा सब भूल गये, छलिया ब्रजभूमि बुलावत है
देख दशा तुम जी रही दिन वो गिन ,श्याम जलावत है 

आस लिये कब से दिल सोच रहा कब प्रीतम को परखू
योजन कोश बसे जब मोर पिया उर में उनको निरखूँ
जीवन बोझ लगे अब पीर भरे उर, बेबस बैन लिखूँ
सावन में घन ज्यूँ बरसे मचले मन चातक नैन दिखूँ

उत्तराखंड देहरादून

प्रेम निवेदन


विधा :- ईश छंद 
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112  121   22 
घनश्याम नेह घेरे ।
जब मीत साथ मेरे ।।
उर प्रीत है बढ़ाये ।
विरहा नहीं सुहाये ।।

मुरली मुझे सुना जा ।
मन कामना जगा जा ।।
सुन ! नाग के नथैया ।
तुमसे खुशी कन्हैया ।।

मृदु बाँसुरी बजा जा ।
दृग स्वप्न ही सजा जा ।।
ब्रज रास तो दिखा जा ।
रस प्रेम का चखा जा ।।

उर कंठ प्यास जागे ।
मजबूत नेह धागे ।।
सच भावना हमारी ।
यह राधिका तुम्हारी ।।

प्रभु मान राखना है ।
सब हर्ष बाँटना है ।।
तुम ही उपासना हो ।
तुम पूर्ण साधना हो ।।

अब जिन्दगी तुम्हीं से ।
सब चैन भी तुम्हीं से ।।
नयना नहीं बहा तू ।
मनवा वही जहाँ तू ।।
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उषा झा 

Tuesday 21 January 2020

मुदित हिया पिय साथ


दोहा सृजन
 तीर चले जब नयन से, हर ले सारे चैन ।
 आतुर है मन बावरा , नागिन लगती रैन ।।

 घायल कितने शूरमा , देख मद भरे नैन ।
 प्रीतम पर मोहित जिया,छलक रहे मृदु बैन ।।

 सजन गए परदेश हैं , अब दिन रैन उदास ।
 मोती झरते नैन से , टूटे दिल की आस ।।

 फेर लिए मुख जब पिया , लगे हृदय आघात ।
अंगार भरे नयन में ,  किसे कहें  उर बत  ।।

 नेह भरे नयना मिले , हृदय भरे अनुराग ।
 अंकुर पनपा प्रेम का , कुसुमित दिल के बाग ।।

 थाम डोर दिल के लिए , छुटे नहीं अब हाथ ।
 नैन में उमंग भरे ,मुदित हिया पिय साथ ।।

 चंचल नयना मिल गए, भाया पिय का रूप ।
सुन्दर चितवन,मृदु बोल , दिल को लगे अनूप।।

 लक्ष्मी विराजे घर में , सजे अधर मुस्कान 
हँसी खुशी घर दीन भी, मिले प्रेम की खान ।।

गए भुला दुख आपना, देखी जो मुस्कान ।
कलुषित मन निर्मल हुआ,दूर भगा अभिमान।।

हाथ मुस्कुराकर बढ़े , जो देते सम्मान ।
घुलती मिश्री हृदय में,बढ़ता सबका मान  ।।

 बिगड़े काम सँवारता, नफरत होती  दूर ।
नहीं पूछ हो रूप की,गुण की चाह जरूर ।।

मिलते दुश्मन भी गले ,मुख पर हँसी बिखेर
तार दिल के जोड़ दिया , हँस कर आँखें फेर ।।

मुग्ध नयना  प्यार भरे , मुख पर है मुस्कान ।
देख पिया प्रफुल्लित मन, हृदय करें रस पान ।।

Monday 20 January 2020

बजी प्रीत की धुन

ज1222   1222  1222 1222
 मधुर धुन प्रीत की दिल में बजी पिय हो मिलन कैसे ।
 धड़कनें तो सुनो आकर , घटे दिल की अगन कैसे ।।
 कि तुम बिन मर नहीं जाऊँ, दवा तो कर पिया मेरी ।
 गमों का बोझ बढ़ती अब ,बुझे उर की जलन कैसे ।।

पिया क्यों खनकती कंगन, न भाये आज पायल है ।
झरे मोती, तुमारी याद में,मन नित्य  घायल है ।।
अधर लाली, सजी शृगांर करके, क्यों धुली कजरा ।
विरह फिर से मुझे हर दिन रुलाती अब कौन साहिल है ।

नही मिलती मुझे चैना कहूँ कैसे तुम्हें सजना  ।
हृदय में पीर कितनी हो उसे अब तो हमें सहना ।।
चुभी काँटे हृदय में जिन्दगी भर अब तड़पना है ।
दिये हो जब विरह प्रीतम शिकायत है बहे नयना ।।

नहीं धीरज धरे दिल अब कहाँ हो पिय चले आओ ।
तमस घिरने लगी देखो सनम रवि भी  ढ़ले आओ ।।
दुखी मन हर्ष के तुम फूल आकर अब खिला जाना ।
सुनो साजन बहे नैना  हृदय  रो रो  कहे आओ  ।।


उषा झा देहरादून

Sunday 19 January 2020

सूखीं नदिया

विषय-नदी
विधा- गीत (16/14 )

नदी शुष्क, नीर -विहिन जबसे , तट भी घिरे  हुए हैं ।
हवा चली ऐसी विकास की, घन अब रूठ गए हैं ।।

है जीवन दो बूँद नीर ही, मानव  व्यर्थ बहाए ।
क्या पूर्वजों के श्रम बेकार , मनु क्यों वृक्ष कटाए।।
अब बरसे न बदरा धरा पर, जीवन मुँह लटकाए ।
टुकुर- टुकुर पशु पक्षी देखे, कैसे प्यास बुझाए?  
 उजाड़ चमन प्रकृति रोती है, मिट अस्तित्व गए हैं ।
 शुष्क नदी नीर विहिन जबसे , तट भी घिरे हुए हैं  ।।

जल बिन नदी धरा है बंजर , सबको भूख रुलाये ।
मनुज बुलायी खुद ही आफत , दूषित वायु सताये।।
जल-संरक्षण बेकार समझा, निज करनी भुगत रहे।
मूल्य वक्त का जिसने समझा, वो ही मुस्कुरा रहे ।।
पट्टी खोलें आँखों की क्यों, वसुधा नष्ट किए हैं ।
नदी शुष्क, जल विहिन तट पर, तट भी घिरे हुए हैं ।

धरती माता उर विह्वल है, ऋतु परिवर्तन से रोती ।
बनी धरा मरुभूमि छुपे घन,अब उपज नहीं होती ।
कंक्रीट- अट्टालिकाओ में, हरियाली कहाँ रही  ?
हुआ नष्ट सौन्दर्य  जगत का , नदियों में नीर नहीं  ।।
खग पशु भी हो रहे हैरान, गिरि वन विजन हुए हैं ।
हवा चली ऐसी विकास की ....

प्रो उषा झा रेणु

Saturday 18 January 2020

कान्हा का रूप अनूप

विद्या:- वर्ष छन्द- वार्णिक
वृहती जाति
मगण, तगण, जगण,
222  221  121

कान्हा पे राधा निसार ।
दोनों ने खोले  उर द्वार ।।
नैना  खोये हैं  अभिसार  ।
भोली राधा दी अधिकार ।।

 कैसी थी वो मोहित नार ।
दौड़ी बंसी को सुन धार ।।
भूली  राहें,  हे   करतार  ।
थामे कान्हा के पतवार ।।

भाये  कान्हा को अनुराग ।
खेले गोपी माधव फाग ।।
मीठा मीठा, प्रेम अपार ।
 देखो छेड़े  हैं उर तार ।।

कान्हा के देखे  ब्रज  रास ।
कैसी माया ! नैनन प्यास ।।
गोपी राधा थी कुछ खास ।
झूमे  गाये पी  बहुपास   ।।

नैनों की आशा अब श्याम  ।
गोपी की चारों  बस धाम  ।।
बंधे जन्मों, है दिल याद ।
सच्चे रिश्ते ही  बुनियाद  ।।

लीला धारी के नव रूप ।
कान्हा राधा नेह अनूप  ।।
काली रैना वे मदहोश  ।
कान्हा नाचे हैं मन जोश  ।।
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उषा झा देहरादून 










पहला एहसास

मृदु स्पर्श नव उमंग मन में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।
शनैः शनैः वक्त फिसल गए ।
बंधन जन्म के बिछुड़  गए ।।

खिले पुष्प चमन में खुशबू ,
द्वय  दिल मचले फिर रूबरू ।।
प्रेम पावन बस महक रहे ।।
उनकी निशानी जेवर हैं ।।
पहला एहसास हृदय में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।

अल्हड़ मस्त स्वप्न कुँवारे ।
नयना लड़े संग तुम्हारे  ।
सूखे गुलाब किताबों में ।
छुपे हृदय हैं दर्द सारे ।
कैद अब जज्बातें दिल में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।
 
भूल सकी न मधुरिम यादें ।
निभा सके कहाँ तुम वादे ।।
 नहीं संग  प्रीतम  हमारे   ।
 शब्द में पिय अक्स तुम्हारे ।।
अधूरी चाह कसक दिल में ।
  अनगिनत यादें जेहन में ।

उषा झा

Thursday 9 January 2020

प्रीत की बात

विथा :- विमोहा छंद
212   212
प्रीत की रात है ।
राज की बात है ।।
तप्त ये गात है ।
 नेह सौगात है ।।

प्रेम तो खास है ।
नैन में प्यास है   ।।
कंत  भी पास है ।
ईश की आस है ।।

जीत संसार लो  ।
लक्ष्य को साध लो ।।
प्रीत को घोल लो ।
धीर को तोल लो ।।

दीप तो नेह के  ।
ज्योत है प्रेम के ।।
 गीत संगीत है   ।
 श्याम ही मीत है ।।

प्रीति को वार दो ।
रीति संवार दो  ।
मान सम्मान हो ।
फर्ज का भान हो ।।

संग तेरा रहे ।
नेह धारा बहे ।।
 सात फेरे कहे ।
मान रिश्ते रहे ।।

  प्रेम के मोल से ।
  मीत *दो बोल* से ।।
  मोद घोले हिया ।
   प्रेम  भाये जिया ।।

  प्रो उषा झा रेणु 
स्वरचित देहरादून 







Wednesday 8 January 2020

कचरे में बेटी


 14/ 14
क.
बेटी की मौत, कोख में ,
सरेआम हो आज रही  ।
ममता की प्याली खाली,
कचरे में खो, नित्य  रही ।।
हृदय लालसा बेटे की , 
सुता उपेक्षा सहती है ।
शर्मसार है आज सृजन
फूट कर वसुधा रो रही ।।
ख.
अत्याचारी छीन रहे
मातु पिता की नींदे तक।
नहीं सुरक्षित बच्ची भी ,
कोई  सँभाले कहाँ  तक?
 जन्म ,कली लेगी कैसे ,
अभिभावक सब डरे हुए ।
स्कूल से घर तक बच्ची,
साये में डर के कब तक? 
ग.
पढी -लिखी बेटी ब्याही ,
दौलत बिना न जा पाती ।
दहेज उजाड़ी जिंदगी,  
बिटिया जान चली जाती।
हँसी खुशी घर सँभालती , 
पर खुद की परवाह नहीं   ।
चाह नहीं  चंद लम्हे की  ,
बिटिया कभी न सुख पाती।

उषा झा देहरादून

Tuesday 7 January 2020

जिन्दगी


जिन्दगी कभी नेह की बौछार करती ।
प्रमुदित हृदय में सावनी घटा बरसती ।
छा जाती बहार रोम रोम महक उठता ।
नैनों में नये स्वप्न झिलमिलाने लगते ।।

जिन्दगी कभी इतनी कठोर बन जाती ।
हम ठगे निःशब्द हाथ मलते रह जाते ।
सागर के तट लहरों से थपेड़े खाते
रेत की भाँती तप तप कर बिखर जाती ।।

जाने जिन्दगी कितने ही  रंग दिखाती ।
किस्मत की लकीर जब किसी की चमकती 
इन्द्रधनुष के सप्त रंग से आच्छादित ।
उमंगों से भरी जिन्दगी मुस्कुराती ।।

आशाओं और विश्वासों के डोर थामती,
कल्पनाओं को हकीकत में ढालती ।
टूटे रिश्ते में जान फूकती जिन्दगी ,
बीज नेह की बो कर मन मरु सींचती ।।

उषा झा देहरादून

Monday 6 January 2020

जीवन की सौगात

विधा-  दोहे मुक्तक 

*मेरे जीवन के लिए*,तुम "श्रेयश" सौगात ।
तुम्हें देख मन हो मुदित , झूमे पुलकित गात ।।
मात शारदे का रहे ,,तुम पर आशीर्वाद ।
मानव मूल्यों की सजे , मानस में बारात ।।
मानवता को तू करे , प्रतिपल आत्मासात ।।

बेटा तुझको तो रखे , ईश्वर ,आयुष्मान ।
मुखड़ा भी तेरा रहे  , सदा  दैदीप्यमान ।।
नहीं अवज्ञा हो कभी , दिल सबके लो जीत ।
आलोकित सब पथ रहें, मिले जगत में  मान  ।।

चाहत दिल में एक ही, नव गढ़ो कीर्तिमान  ।
सेवा कर मात पितु का , लाना मुख मुस्कान ।।
लड़ना वंचित के लिए,  मिले उन्हें अधिकार ।।
नाज करें तुम पर सभी, बढ़े हमारा शान ।।


उषा झा देहरादून

विरही तन मन सर्दी में


विधा :- हंसमाला छंद
मापनी- 112  212  2

वन  में  मोर  नाचे ।
मन के  प्रीत  बाँचे ।।
झुमके   बूँद   गाये ।
जग  को   प्रेम भाये ।

पिय  ने  नींद   छीना ।
रति ने  होश  छीना  ।।
जगती  आँख  जीना ।
अब  तो  दर्द   पीना ।।

चमके   मेघ    काले ।
छलके   नैन   प्याले ।।
कजरी  गीत   गा  ले ।
उर के   खोल  ताले ।।

सपने    नैन    डोले  ।
रसना   नेह   घोले ।।
दिल  के  भेद  खोले ।
पिय भी    प्रेम   तोले ।।

सजना   ताज  साजे ।
दिल   के  साज  बाजे ।।
अब तो  पास   आओ ।
सुख   के  रैन   लाओ ।।

घन    छाये,  रुलाये ।
विरहा  भी   जलाये ।।
तम  की  रैन  जागूँ ।
खुद  से   नित्य भागूँ ।

चुपके ख्वाब आते।
मुझको  क्यों  जगाते ?
बस वो भाव खाते  ।
मुझसे   दूर   जाते ।।

सहना  पीर  भारी ।
सजना  धीर   हारी ।।
लग   जा  अंग  मेरे ।
रहना   संग    तेरे ।।

Friday 3 January 2020

खुशियाँ आये नववर्ष

विधा-  दोहे मुक्तक 

सूर्य किरण नव वर्ष की ,पूर्ण करे सब आस ।
सुष्मित पुलकित हृदय में,नव भरे अहसास 
जीवन आलोकित सदा,रहे तमस अब दूर ।
नित्यराग,उमंग नवल,जीवन हो न उदास ।

कोहरे की चादर से , लिपटे मोती घास ।
प्रीत मुखरित मुदित हिया, नैन स्वप्न है खास 
भीनी भीनी महक, उर , याद करे गत वर्ष।
ख्वाब पूर्ण नव वर्ष हो, भरे हृदय  उल्लास 

बिछुड़े परिजन हृद बसे याद करे दिल आज
धूँध  वक्त के  खो गए , रोये हैं दिल आज ।।
 कहाँ छुपे वो छोड़ कर,थे जो बहुत अजीज 
बीते निशान वर्ष के, ढूंढ रहा दिल आज ।।

नया वर्ष खुशियाँ लिए, आना मेरे द्वार ।
प्रतिपल ही उल्लास भर,सुखी रहे संसार ।
ईश ! शीश पर हाथ रख,देना प्रभु आशीष ।
हमें भँवर से तार दो, इतना कर उपकार  ।

उषा झा देहरादून

Thursday 2 January 2020

उर में पुष्प खिले

विधा-  माहिया छंद- 
 12, 10 , 12 मात्राएँ पंक्तियों की 
पहली तिसरी चरण समतुकांत ।
212 वर्जित ।

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तन भी ठिठुर रहा है ।
ऋतु का कहर मचा ।
पिय जी मचल रहा  है ।

शीतल सेज रुलाई ।
प्रियतम भूल गए ।
सर्दी अगन बढ़ाई ।

कटती सजन न रैना ।
किससे दुख बाटूँ ।
निस दिन बरसे नैना ।

विरहा दर्द बढाये ।
पिय अंग लगाना ।
देख शिशिर सताये ।

तकती हूँ अब राहें ।
कितने वो बेदर्दी ।
निकली दिल से आहें ।

छुपना पी के बाहों ।
प्रियतम आ जाओ।
महके  गजरा बालों।

उर में पुष्प खिलाऊँ ।
उर आंगन गमके ।
कर शृगांर रिझाऊँ।

दमके क्यों मुखड़ा ।
मन संग तुम्हारा ।
दिल में जो प्रीत जड़ा ।

उषा झा देहरादून 

झूमे कोकिल मन

विधा हरिहरण घनाक्षरी 
8,8,8,8

मदीर बहे पवन ।
दूर धरा की तपन ।
महके चंदन वन ।
मुदित मानव मन ।

पुष्पित है गुलशन ।
सुरभित है कानन ।
सारिका फुदके वन ।
झूमता कोकिल मन ।

मन भावन सावन ।
पुलकित जन जन ।
पिया से लड़े नयन ।
पिघले नेह से मन ।।

बजे पायल छनन ।
जब  खनके कंगन ।
भरे उमंग सघन ।
बहके प्रीतम मन ।

उषा झा