स्त्री पुरुष एक दूजे के ही पूरक होते
समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए होते
चलना असंभव समाज व परिवार
दोनों में एक जब हो जाए कमजोर
बढ़ेगी तभी समाज की निरंतर गति
जब पहिए रहेगी गतिशील बराबर
दोनों हो सलामत तभी जग की प्रगति
स्त्री पुरुष एक दूजे के ..
नर नारी दोनों स्वभाव से विपरीत
नारी कमजोर, कोमल व दया की मूरत
कद काठी भी दोनों के ही भिन्न होते
नर धीर गंभीर और शरीर से मजबूत
भिन्न होके भी दोनों में प्रेम है अनंत
स्त्री पुरुष एक दूजे के पूरक होते ...
ईश्वर के लिए दोनों ही बराबर होते
समान हक दे के ही वो धरा पे भेजते
मुट्ठी भर लोग नारी के हक छीन लेते
लाचार और अबला करके वो छोड़ते
व्यक्तित्व निखरे जब सब इज्जत देते
स्त्री पुरुष एक दूजे के ...
घर को स्वर्ग सा नारी ने ही संवारा
सबके लिए ही दिल में है भरी ममता
माँ ,बहन, पत्नी हर रूप को निखारा
फिर भी तिरस्कार नारी सबकी सहती....
नेह मिले नारी को घर खुशियों से भरती
स्त्री पुरुष एक दूजे के..
जहाँ नारी की अवहेलना न होती
फौलादी सीना लेकर चरित्र गढती
नर के उपर न्योछावर जीवन करती
सुख दुःख में हमेशा साथ निभाती
जिन्दगी दोनों की ही हसीन हो जाती
स्त्री पुरुष एक दूजे के ..
जब नारी को मिलता हक बराबर
जब मिलता घरों में समान अवसर
तब पुरूषों के कंधे से कंधे मिलाकर
सफलता की परचम हर ओर लहराती
हर क्षेत्रों में प्रतिभा से रूबरू कराती
स्त्री पुरुष एक दूजे के ही पूरक होते
समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए होते
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