विधा बरवै छंद
गर्भपात करवाया ,बेटी भार । 1.
देख दुर्दशा ऐसी , उर लाचार ।
तार तार इज्जत से ,वो गई हार ।
हुआ जमाना वहसी , है बेकार ।
जब माली ही उजाड़, दे स्वयं बाग ।
खिले कैसे कली.. हो, दिल में दाग ।
रक्षक बन जाए भक्षक, सुता अधीर ।
उपेक्षित अस्तित्व से , बहाती नीर ।
अब न सहेगी बिटिया, ओछी सोच । 3.
करे स्वयं की रक्षा, आंसू पोंछ ।
थोपे अपनी मर्जी, कर प्रतिकार।
तमस भरा जीवन , हो उजियार ।
बस इतनी सी चाहत, दे सब मान । 4.
हो न भेदभाव मिले , अब पहचान ।
नभ में विचरण करे, बन परवाज ।
तारे तोड़, करेगी , वो आगाज ।
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