Thursday 4 October 2018

बिखरे जीवन

विधा -राधिका छंद

बचपन बीच राह पड़ा,,,अधर में जीवन          1.
जननी भी मुँह मोड़ ली,, नीर भरे नयन
आया न तरस उसे,क्यों?,,, हमें  छोड गयी
तड़पा ना दिल तनिक भी,,, मुझे भूल गयी

नियति पे चलता न जोर, रुठ रहा जीवन।      2.
शायद ममता मर रही, मध्य हो असुवन।
दिल के टुकड़े से मोह, हुआ क्या हासिल।
लाख किया है कोशिशें, मिली क्या मंजिल।

प्यार में लुटा के होश,, बिखरते गये हम।        3.
इश्क की आग में रोज,, झुलसते गये हम।
काम ऐसा तुम‌ न करो, पड़े पछताना।
सदा सोच कर रख कदम, होश न गवाना।

खुद के हाथों लूट गई ,,,जीवन बिखर गई         .4
की जो तुम भूल अपना,,घर ही जला गई
करके अपना होश गुम,,,, भूल गई राहें
लो काम अगर अकल से,खुशी मिले तुम्हें

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