रूप माला छंद
रघुवर गहरी धार देख , सोचे गंगा तीर
अनुनय करके बोले हरि,कर न हमें अधीर
कैसे गंगा पार करूँ ,सिय है सुकुमारी
जनक नंदिनी थकी हुई ,प्राणों से प्यारी
केवट नाव ले कह रहे ,पग लूँ मैं पखार 2.
रूपा की बने न नैया, वो करते गुहार
भाव देख मोहित हुए हरि, हँसके दिए दाद
जनम मरण के बंधन से,मुक्त हुआ निशाद
हरि के चरण जब पखारा ,बंधा नेह अटूट 3.
बहाने चरणामृत पान , बोल दिए सौ झूट
दाम प्रभु से लिए बगैर, ले गए गंगा पार
केवट हृदय भाव बिभोर, हुआ भव से पार
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