Thursday 4 October 2018

शिव चौपाई

विधा- चौपाई/दोहा संयुक्त सृजन

शिव शंकर मन के भोले , वो हैं कृपा निधान।
मुदित शंभु तांडव करे ,रहते हैं अंतर्ध्यान   ।

सुर नर तेरा महिमा गाये
जग के नियम तुमने बनाये
सभी देव के अराध्य तुम्हीं
तीनों जगत के स्वामी तुम्हीं

कैलाश पर्वत पे निवास है
वस्त्र पहनते मृगछाला हैं
अमृत बाँट सुर अमर बनाये
पीकर विष नीलकंठ कहाये

नंदी सवारी तुझको भाये
जटा में गंगा चंद बसाये
गले सर्प मूंडमाल शोभते
भस्म रमा योगी कहलाते

विलपत्र आक तुझेअति भाते
भांग धतुरा निश दिन खाते
मन वचन से जो कोई ध्यावे
तुम उस पर प्रसन्न हो जावे

देवाधिदेव तुम दया करो
उर के सारे अब क्लेश हरो
जगत का करो सदा कल्याण 
दिन रात  मांगूँ  ये वरदान

जब करे कोई अभिमान,क्षण में कर दे चूर्ण
मन से शिव आराध्य लो,,करे कामना पूर्ण

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