Thursday 25 October 2018

जल संरक्षण

विधा- कुण्डलिया

 प्यासा है जग नीर बिन , बहा नीर न इन्सान
बिन नीर नहीं जिन्दगी , धारण कर यह ज्ञान 

धारण कर यह ज्ञान  , समस्या जग की सुलझे
अगर चाहिए  नीर  , बचा जल उलझन उलझे

 भरे झील तालाब , देना खग पशु  दिलासा 

  खर्च हो बूँद बूँद,  नहीं हो कोई  प्यासा

धरती विकल अब वृक्ष बिन , मानव है नादान        2.      
बिना वृक्ष ऋतु बदल ता  , वन बहुत मूल्यवान

वन बहुत मूल्यवान ,पहुँचा न नुकसान इसे ।।
काट नहीं अब वृक्ष , चेतावनी मान इसे

सभी लगाना पेड़ , प्रकृति सम्मोहित रहती ।
अधर सजे मुस्कान , रहे हरी भरी  धरती

 सूना वन लग रहा है , हरियाली है लुप्त        3.
होते शिकार नित्य पशु , अनगिन जंतु विलुप्त ।

अनगिन जंतु विलुप्त  ,मनुज आखेट  लुभाते
मारे चीता शेर, खाल बेच धन कमाते ।।

 असुरक्षित वन जीव ,वनों की हानि दूना
 संरक्षण हो सृष्टि , बिना पौधे वन सूना  ।।

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