नारी जब रहती हर्षित
नाचता गाता उसका मन
पंखों में आ जाती जान
आसमां में भरती उड़ान ।।
फूटता नए अंकुर नारी के मन
सिंचित करे कोई उसका जीवन
फूलों सी वो बागों में खिलती
बन के खुशबू फिजां में महकती ।।
निश्छल प्रीत से नारी निखरती
दिल में उमंगो की लहरें मचलती
पंछियों की तरह वो चहकती
झरणों के मानिंद मीठी धुन में गाती ।।
कोई उसे दे दे थोड़ी सी इज्जत
मन का गागर छलक ही जाता
निकाल के रख देती वो कलेजा
स्नेह की बूँदें जो कोई बरसाता ।।
किसी के गम वो सह न पाती
नारी होती करूणा की सागर
मन उसका भींग ही जाता
देख के किसी के पराया पीर ।।
अकेले ही जीवन के झंझावात
नारी हिम्मत से सहती रहती
बिना रूके, बिना थके, बिना मुड़े
नदियों के मानिंद बहती रहती ।।
हृदय में सागर सी विशालता
संवेदनाओं से भरी हर नारी
ममता की छाँव उसका आंचल
त्याग की अप्रतिम मूरत नारी ।।
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