Thursday 12 September 2019

विरह

विधे :-  गीत
रस :- श्रृंगार ( वियोग )
छंद/बहर :- विजात छंद

भरा आँगन जिया रोता,
हृदय प्रीतम बसा होता।

मलय अब तन जलाता है,
नयन भी जल बहाता है।
सभी से पीर बस पाऊँ,
पिया तुम बिन न मर जाऊँ।

नयन कजरा धुला होता,
भरा आँगन, जिया रोता।

सखी गजरा सजाती है,
अधर लाली लगाती है।
सजाया रूप मत वाला,
रहा फिर भी बदन काला।

सजन अब सेज ना सोता
भरा आँगन जिया रोता ।

जले है तन बदन देखो,
लगी मन में अगन देखो।
सजन सावन रुलाता है,
नहीं मन चैन पाता है।

सजन अब सेज ना सोता ,
भरा आँगन,जिया रोता।

बिना साथी तरस जाता,
अकेले कौन जी पाता।
सजन ये बोझ जीवन है,
ह्रदय में सिर्फ क्रन्दन है।

विरह के बीज ही बोता,
भरा आँगन जिया रोता।

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