विधा- दुमदार दोहे
करें,प्रकाशित गुरु जहाँ, सब मिटे अंधकार ।
गुरु प्रकाश के पुंज हैं,करते वो उद्धार ।।
पथ दिखाएँ जब भटके ।
गलत रास्ते जब अटके।
गुरु, जीवन पतवार है,उन बिन डूबे नाव ।
सच्चे दर्शक राह के , उनका सहो दबाव ।।
सेवा कर ,लो लाभ सब ।
दर्शन पालो आप सब ।
गुरु बिना भेदभाव के , शिक्षा देत समान ।
भविष्य उनके चरण में , गुरु का कर सम्मान ।।
दिखलाओ अवगुण उन्हें ।
कभी न तुम टालो उन्हे।
गुरु समाज को सीचते , करके विद्या दान
छलके गंगा ज्ञान की , सबका हो उत्थान ।
मिटाते तमस जगत में ।
जगाते अलख हृदय में ।।
गुरु बोल लगते कड़ुवे , वो हैं नीम समान ।
अंकुश गुरु मन पर रखे, लेलो विद्या दान ।।
विकार हटाते सबके।
पवित आचरण मन के ।।
जीवन भटकता बिन गुरु , ज्यों पतंग बिन डोर ।
जीवन गढ़ते कुंभ सा , दक्ष अंगुली पोर ।।
शीश झुका लो चरण में ।
आओ गुरु की शरण मे।
गुरु से विद्या सीख लो , करो ज्ञान भंडार ।
सिर उनका ऊँचा करो ,बिखरे रंग हजार ।।
जीवन में लाये खुशी ।
मिटे विषाद, मिले हँसी ।।
रिश्ता पावन शिष्य गुरु, हैं सदा बरकरार
आदर जब उनको मिले ,परंपरा साकार ।।
कर्म केपरचम लहरे ।
रंग जिन्दगी में भरे ।।
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