Thursday 26 September 2019

विकल राधा

विधा- मधुमालती
२२१२    २२१२ 
राधा विकल ,मन हो चली 
यमुना किनारे रो चली
मोहन बिना, सूनी गली
वृषभानु की, वह लाड़ली

छलिया खुशी, सब ले गया
वह दर्द कितने दे गया
विरही भटकती राधिका
वह श्याम की है साधिका

कैसे जिए अब साँवरी
माधव पुकारे बावरी
बंसी बजा, अब मोहना
दुख से उबारो सोहना

जीवन कहीं, पर खो गया
जब दूर कृष्णा हो गया
प्रियतम कहाँ तुम हो गए
नेहा लगा क्यूँ सो गए

ब्रज की गली, चुपचाप है
हर ओर बस, संताप है
माया ठगे, से लोग हैं
यह लाइलाजी रोग है
 
उद्धव नहीं समझाइए
अब ज्ञान ना, बतलाइए
राधा नहीं, जब श्याम की
विधना भला, किस काम की

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