Thursday 26 September 2019

राम सिय वनवास

विधा-चौपाई/ दोहा(कड़वक)
विषय - राम वनवास

कैकयी सिया राम से  ,,करती स्नेह  अटूट
थी मंथरा कुटिल बहुत ,,महल डाल दी फूट
 
जभी कुमति ने डेरा डाला
आ ही गया दिवस फिर काला
 जा रहा विटप राज दुलारा
 छा गया नगर में अँधियारा

युवराज चले अब महलों के
जो थे ज्योति सभी नैनों के
दुखद घड़ी की बेला आई
राज महल में दुर्दिन छाई

जान लिया कारण दुख का
मान लिया आदेश पिता का
राग द्वेष  बिन आज्ञा कारी
लगी कैकयी माता प्यारी

रघुवर नंगे पाँव गए वन
सबके निष्प्राण हुए मन
लहर शोक की जन जन छाई
 नगर अयोध्या विपदा आई

कौशल्या को  मुर्छा छाई  ।
गंगा यमुना नीर बहाई    ।
बजे महल में पायल किसकी
बसे प्राण सीता में उसकी

वैदेही जब वन चली ,,कानन विटप उदास
सिया पाँव छाले पड़े,,मलिन मुख नहीं खास 

हुआ पिया बिन जीना भारी
रही अधूरी पति बिन नारी
मौन उर्मिला थी शर्मीली
नैन नीर रख रही अकेली ।।

चली  विमाता चालें कैसी
कसम खिला दी क्यों कर ऐसी ।
पुत्र राम प्रस्थान किए वन
दशरथ तज दिए प्राण तत्क्षण  ।।

छा गई महल अजब उदासी
हुए राम लक्ष्मण  वनवासी
विधि का विधान किसने जाना
दासी का क्यों कहना माना

भरत खबर सुन दौड़े आए
प्रजा संग माता को लाए
चरण पकड़ भाई के रोया
राम भरत को गले  लगाया  ।। 

दोनों भाई मिल रहे,,  नैन बह रहे नीर
रघुवर भी विचलित हुए ,,था द्रवित उर अधीर

भाई मिलाप पीर भरा था
सब नैनों में अश्रु भरा था
किस्मत ने सब खेल रचाया
कानन कुँज भी अश्रु बहाया  ।।

राम भरत को फिर समझाया
कर्तव्य सभी फिर बतलाया
कर्म करो तुम जब तक आऊँ
लौटे लेकर भरत खड़ाऊँ  ।।
 
महान पूत राम कहलाते
मर्यादा की रीत सिखाते
सारे जग हो कुटुम्ब जैसे
युगों जनम लेते मनु ऐसे  ।।

व्याकुल माँ कहती फिरे ,,हुआ ग्रह का मेल
राम सिया वन वन फिरे,,भाग्य का है खेल

उषा झा स्वरचित

 

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