समय को लग जाते हैं पंख
सुख के दिन कितने जल्दी
तीव्र वेग से बीत जाता
पता ही नहीं चलता ...
खुशियों को समेटते समेटते
जीवन की सांझ ढल जाती
रूप यौवन खत्म हो जाता
पता ही नहीं चलता ...
कुछ बनने के धुन में खोकर
बचपन वक्त के तीव्र वेग से
तालमेल बैठाने में लगा रहता
वक्त तो हर पल बदल जाता ..
युवावस्था में परिवार व बच्चे
के बीच फर्ज निभाते निभाते
वक्त हाथों से फिसल जाता
पता ही नहीं चलता ..
फर्जों के इस आपाधापी में
बहुत से काम अधूरा रह जाता
ख्वाहिशें कई अधूरी रह जाती
समय बड़ा ही बलवान होता ..
जीवन के पौधे छायादार वृक्ष बन
जाने कब सूखने लग जाता
समय चक्र कब बदल जाता
पता ही नहीं चलता ...
पौधों को हर कोई ही सिंचता
पेड़ बन फल फूल जो वो देते
जीवन की कैसी ये अद्भुत रीत
सूखे पेड़ को कोई न पूछता ..
यौवन का संग जब होता
सब कोई नतमस्तक होता
सूखे पेड़ को सब काटता
हर कोई ही उसको जलाता
हो जाते हैं जीर्ण शीर्ण देह
विवशता पे अपनी वो रोते
जीवन जीवंत खत्म हो जाता
पता ही नहीं चलता ...
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