रदीफ- में
काफिया- आने
सरल व कोमल जानके लगे सब हथियाने में
सब समझके फिर भी जुटे हैं अपना बनाने में
तिनके तिनके जोड़ नीड़ बनाने में वो बेपीर
मरते दमतक कोशिश करते रिश्ते बचाने में
मजलूमों के दर्द कोई नहीं समझा करते हैं
संसार में सब तैयार बैठे हैं कहर बरपाने में
जीगर पे लगे जख्म सह लेते हँसते हँसते
पीर देने वाले ताक में फिरते हैं आजमाने में
व्यथा को बाँटने पर जग हँसाई ही करवाते
लोगों को मजा आता है ढ़िढोरा पिटवाने में
किस्मत में लिखे चाहे कितने गम क्यों न हो
फिर भी पी रहे हैं दर्द, लगे हुए हैं छुपाने में
मुहब्बत में बेवफाई तो को नई बात है नहीं
जाने क्यों दिलबर संग लगे ख्वाब सजाने में
जले पे रखना नमक, है आम बात लोगों की
कोई कोई ही लगे रहते हैं, रोते को हँसाने में
उजड़े घरों को बसाना है बहुत नेकी की बात
ऐसे फरीस्ते ने काम किया मनुजता बचाने में
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