Thursday 10 January 2019

प्रेम नशा

विधा- सार छंद

उमंगों भरे वो नायाब पल ,,,थे बहुत ही सुहाने
ख्वाब भी हकीकत सा लगता,,मदहोश दो दिवाने
मन की कलियाँ चटक रही थी,,,भ्रमर सा गुनगुनाता
बाहुपास में प्रिय के हरदम, उर बहुत मचल जाता

बजते थे दिल के साज मधुर,,, प्रीत ने चैन लूटा
पुरवाई जब तन महकाया,,, हद बंदिशों का टूटा
 नैनों में सपने साजन के,,,धीर न आस बंधाये
 जिया में बस गए पी ऐसे,  मन को कोई न भाये

आशिकी सिर चढ़ के बोलता, ढूंढे मिलन बहाने
मुहब्बत में आकंठ डूबे , देख बुत थे जमाने..
प्रियतम का जादू जब चलता,हृद रंगीन हो जाता
नशा के इस आलम में नयन, प्रेम बूँद बरसाता

आलिंगन को तरसे प्रियेसी,  शब्द मधुर टपकाते
मिलन बेला के इन्तजार में , वो दिन रैन गवाँते...
प्रेम मदीरा जो पी लेता,,,  लोग कहते दिवाना
जवां दिल राही एक पंथ के , ख्वाब मिल के सजाना
 

 
 

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