Monday 21 January 2019

गरीबी

विधा-  राधिका छंद

दहके ज्वाला पेट की ,,,कदम भटकाए  ।
निर्धन  के  पीर  भारी ,,,भूख रूलाए ।
भूखे को कभी नहीं ,,, उप देश सुहाय ।
खाली हो जब पेट तब,,,भजन कहाँ होय ।

रोटी दो जून की भी,,,नहीं  इख्तियार    ।
मुफलिसी तकदीर लिखा,,,मिला न अधिकार  ।
ठोकर खाना नियति कब,,,भाग्य  बदलेंगे ।
भरा रहे सबका पेट,,, भीख क्यों मांगे ।

 दरिद्रों की बिमारी भूख ,,, कौन दुख समझे  ।
 किस्मत पर जोर न चले,,,राह न अब सुझे  ।
 निर्बल को  सब लोग ही ,,,  रखते   दबाके ।
 खुशियाँ सबलों के सभी ,,,, ऐश  है  उनके ।

फेकना अन्न रोज ही,,, शान अमीर का   ।
चुटकी भर दाना नहीं,,,  घरों में विप्र का ।
मुट्ठी भर अनाज क्षुधा,,, शांत कर देती  ।
फेंके अन्नों  ही कितने ,,, पेट भर देती    ।

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