विधा-- ललित छंद
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प्रियतम बिन विरह की मारी,,,नैन बहे जल धारा
शूल बन गई सेज हमारी ,,,, मुझे पीर ने मारा
आया है ऋतु पावस देखो,,, लेकर रिमझिम बूँदें
अगन बढ़ाए मिलन की, जगे ,,,चाहतों की उम्मीदें
तड़पते हैं हम तुम विरह में, दिल वियोग में हारा
शूल बन गई सेज हमारी,,, मुझे पीर ने मारा.. 1.
गरजे हैं नभ में बादल क्यों ,,,देते उन्माद जैसे
तरसे उर अब प्यास बढ़ाती,,,हुए व्याकुल ऐसे
दग्ध हृदय की चैन छीन रही,,, वेदना बहुत भारी
सजनी बैठे राह निहारे,,, अंखिया भी है हारी
अनगिनत ख्वाब नैन में सजा,,,, धरा ने नभ उतारा
शूल बन गई सेज हमारी,,,,, मुझे पीर ने मारा ...2.
पवन झूम के तुझको बुलाये,,, क्यों मुझको भूल गए
बनी आज धरती है दुल्हन,,, जाने किस देश गए
मचल रहे हैं अरमान बूँद,,, प्रेम उपहार लाए
मेघों के गर्जन नर्तन भी,,,पी के याद दिलाए
बाग में कुहूके कोइलिया ,,,सुनके लगता प्यारा
शूल बन गई सेज हमारी,,,, मुझे पीर ने मारा ...3.
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