विधा- गीत
सावन सुहावन लाई बरखा बहार
सन सन पवन चले हिया में करे शोर
उड़ते घुमड़ते बादलों को देखकर
धड़कनें लगी अरमां दो दिलों की
आसमान से बरस रही बूँदे हजार
सावन सुहावन लाई ...
गगन में देख कर घटाएँ घनघोर
मुदित चातक स्वाति बूँदें देखकर
पपीहा गाने लगी नाचने लगे मोर
किसलय से सुसज्जित बन हुए हरे
कलियाँ खिली, बागों में आई बहार
सावन सुहावन ...
बादल के गर्जना से दामिनी दमकी
टीप टीप बूँदनियाँ भी छत पे टपकी
सौंधी सौंधी जब खुशबू छाये मिट्टी की
प्रियतम से मन मिलन को तब तरसे
आसमान से गिर रही रस की फुहार
सावन सुहावन ....
मचले हैं अरमान, कदम भी बहके
बूँदों की रिमझिम सुनके मन थिरके
मन के भाव जगे जब घिर आई बदरा
ताप मिटे हिय के ,सुर सजाती जियरा
प्रीत के हिलोर में डूब जाता है संसार
सावन सुहावन लाई ....
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