Thursday 28 December 2017

नए साल में

नए साल नई खुशियाँ लाए
काली अमावस की रातें दूर ही रहे
पड़े न वास्ता किसीको मुफ़लिसी से
सबके जीवन उजालों से भर जाए ..

घर आंगन खुशियों से खिलखिलाए
न हो सामना गमों से किसी का
हर घर प्रसिद्धि से रौशन हो जाए
सबका मन नई उमंगों से मुस्काए ..

कई यादें जो दिल को कचोटता
जिनकी छाया अब न नसीब में
 जो हमारे दिल के बेहद करीब थे
बीते हुए वर्ष ने दी दुखों की सौगात ..

वो स्नेहहील रिश्ते जो बिछुड़ के
बहुत दूर चले गए हमें तन्हा करके
है उम्मीद न होंगे जुदा किसी से नए साल में ..
सब कोई रहे स्वस्थ व खुशहाल नए साल में ..

Wednesday 27 December 2017

जीवन की निरंतरता

जिन्दगी चलती रहती है
चुपचाप बिना शोर के
बिना रूके बिना थके
अपने ही लय में, निरंतर गति से
जिन्दगी चलती रहती है ..
 जीवन की पथरीली राहों में
 लड़खड़ाके भी बढ़ते रहते
और  हिम्मत से चलकर
 मंजिल को पा ही लेते
जिन्दगी चलती रहती है ..
लोग मिलकर बिछुड जाते
यादों के साथ रह जाते
किसी के बेबसी से बेपरवाह
जिन्दगी चलती रहती है ..
जीवन के डोर जब टूटने लगते
धीरे धीरे जिन्दगी फिसलती जाती
और नियति के आगे हार जाती
फिर दामन को छोड़ बढ जाती
जिन्दगी चलती रहती है ..

Tuesday 26 December 2017

संस्मरण ..

मेरी माँ ने छै मई को एकादशी उद्दयापन रखा था।बहुत ही भव्य आयोजन रहा ।पंडितों और परम्पराओं  के अनुसार माँ ने स्वेच्छा से पूजा विधि ,दान और ब्रह्म भोज कराया ।पूरे रात भजन कीर्तन भी हो रहा था ।मन में एक अजीब तरह की अनुभूति का संचार हो रहा था जैसे देव स्वयं विराजमान हो गए हों ।माँ पापा के गुजरने के बाद थोड़ी उदास सी दिखती है, न जाने क्यों उस दिन उनके चेहरे से अलग ही नूर टपक रहा था मानो पापा दिव्य आलोकिक तेज बनकर माँ के आत्मा में प्रविष्ट हो गए हों । पापा को
बड़ा ही मन था धूमधाम से माँ का एकादशी उद्दयापन करवाने का पर जिन्दगी ने उन्हें मौका ही नहीं दिया ।परंतु उनके बच्चों ने कोई भी कसर नहीं छोड़ा ।सभी रिश्तेदार, मित्र पड़ोसी उपस्थित थे शिवाय हमारे "पापा" के ।लेकिन न जाने क्यों किसी को भी उनकी अनुपस्थिति का एहसास ही नहीं हो रहा था ,लग रहा था वो वहीं हैं इधर उधर कहीं  ।जब पूजा विसर्जन हुआ तो पापा के प्रतिमा पर माल्यार्पण के समय सबकी एकाएक तंद्रा टूटी ,हम सभी लोग भाव विह्वल हो उठे ।सबने भींगी आँखों से पापा के चरण छू कर पूष्प अर्पण किया ।माँ को संभालने के लिए मैंने भी खुद को संभाला और अच्छे से उद्दयापन के बाकी बचे पूजन विधि को पूरा होने तक सभी रश्मों को पूरे मन से निभाया ।

Monday 25 December 2017

सच्ची कहानी- -जीवन एक कर्मभूमि

सभी को अपने सारे कर्मों का हिसाब चुकता करना ही  पड़ता है ।जीवन में जो भी कर्म करते हैं उसका फल एक दिन अवश्य मिलता है । यहाँ पर हम जो भी करते हैं, यहीं भुगतना पड़ता है ।इन्सान बूरे कर्म करते वक्त उसके बूरे  परिणाम को नजर अंदाज कर देता है ...बात बहुत पुरानी है , मेरे मायका के दलान पर  बहुत बड़ा और सुंदर राधाकृष्ण जी का मंदिर है ।नित्य दिन पूजा पाठ के लिए पुजारी रहते हैं ।एक दिन मेरी दादी का कुछ खो गया ,बहुत खोजने पर नहीं मिला..वो दुखी हो कर नाराज हो रही थी इस पर मेरे पापा ने झल्लाकर कहा, मेरे कमरे में इतना समान है  कभी कुछ खोया ही नहीं आपका समान मिल जाएगा ।बगल में पुजारी सब सुन रहे थे ।उसी रात मेरे पापा के कमरे में पुजारी  चार डाकू ले के आया और सब कुछ उनलोगों ने चुरा लिया अंत में मेरे पापा पर आक्रमण करने वाला था परंतु पुजारी ही उस समय अपने साथियों से बचा लिया ।पापा इस एहसान के बदले पुजारी को पुलिस से बचाया और जेल जाने से रोक दिया साथ ही सजा माफी भी दिलवा दिया ।उस समय हम सभी भाई बहन बहुत छोटे थे।बड़े होने तक उस पुजारी को दादी के पैर पर रोते गिडगिडाते देखा करती थी ..पुजारी को कुष्ठ रोग हो गया था, उसकी पत्नी का देहांत हो गया था। पूरा परिवार ही बिखर गया था ।इन सभी को वो अपने कर्मों का फल मानता था...सचमुच हम जो बोते हैं वही फसल काटते हैं ।हमारे सभी कर्मों का फल इसी जिन्दगी में भुगतना पड़ता है ।अच्छे कार्य का फल भीअच्छा होता है और बूरे काम का बूरा ही फल मिलता है ...

Sunday 24 December 2017

यादों के झरोखों से (बेटी की विदाई)

बिटिया के शादी के वर्षगाँठ के उपरांत वो सारी बातें याद आ रही है..मैं कितनी गमगीन और परेशान हो गयी थी।जिस बेटी को अपने से एक पल के लिएअलग नहीं की थी अब उसे विदा करना है, ये सोचकर ही मन बैचेन सा हो रहा था ।खैर विदाई तो करनी ही थी ।औरत भी अजीब होती है ..
जब तक उपयुक्त रिश्ते नहीं मिल रहे थे ,तब भी परेशान थी।हमेशा यही सोचती मेरी फूल सी बच्ची के लिए अच्छे
और संस्कारी वर और परिवार मिल जाए ।अब जब सब तरह से योग्य वर और परिवार मिल गया तो मन भी  आनंदित हो उठा ।शादी के तैयारी से लेकर कन्यादान तक मन में किसी और बात सोचने की फुर्सत ही नहीं थी।
मुझे याद है कन्यादान के समय मेरे पति फूट फूट कर रो रहे थे ,परंतु मैं बिलकुल नहीं रोयी ।लेकिन विदाई की घड़ी आते ही न जाने क्यों मन इतना व्यथित हो उठा ,शायद परायी होने के गम को सह नहीं पा रही थी
लग रहा है था मानो मेरे शरीर से दिल को काट कर निकाला जा रहा है, सचमुच विदाई का वो पल बहुत वेदना से भरा हुआ था ।आज भी याद आने पर आँखें नम हो जाती है, मन बहुत भींगने लगता है ।सचमुच बिटिया होती ही ऐसी है... जब जाती है तो घर से रौनक ही चली जाती है ..आती है तो घर भी खिलखिलाने लगता है ..
शादी के बाद हम सब घर से देहरादून आ गए।बिटिया के एक एक समान, कपड़े सम्हालते समय फूट फूट कर रो रही थी ।
घर का एक एक कोने पे उसकी याद को समेट कर कहाँ रखती ..सब जगह खाली खाली लग रहा था ।पहले भी हास्टल पढ़ने के लिए गयी ,परंतु उस समय थोड़े से समय बाद उदासी भाग जाती थी ,लगता छुट्टियों में तो आएगी ही ।लगभग साल भर बहुत उदासी में कटा समय ।डॉ साहब  (मेरे पति) ने बहुत समझाया, तुम्हारे बिना भी घर उदास हुआ होगा,दुनिया की रीत निभानी ही पड़ती है ..
बिटिया ने भी समझाया .."मम्मी मै हमेशा तुम्हारी हूँ ,बस
मेरी जिम्मेदारी बढ गयी है।मुझे दोनों घर सम्हालना है ।
आप खुश रहोगी तो मैं भी खुश रहुँगी।"खैर बिटिया के समझाने पर अब मैं सम्हल गयी हूँ ।बिटिया पढाई के साथ साथ सारे रिश्ते बखूबी निभा रही है ।सब उससे बहुत खुश है ।जीवन उसे हर खुशीयों से नवाजे..

Saturday 23 December 2017

नीरव निशा

निः शब्द निशा
शुकुन भरा पल
लेके आयी
देके जाएगी
ढेरों ऊर्जा
कल के सुबह के लिए ..

टिमटिम तारों के
साथ चंदा से
देखो दो पल
मिलने आई
पल में ही बिछुड़ के
चली जाएगी ..

नेह भरे कुछ
पल देके नीरव निशा
निश्क्रंदन कर
आती मिलन की
आस लिए अपने
प्रियतम चंदा से ..

सुहानी मनमोहनी
मधुर यामिनी
शुकुन के चंद
लम्हें लेके ..
देती मिटके भी
कई खुशियाँ ..

मिलन की वो
सुनहरी रातें
पल में ही जुदा
हो कर बनके
रह जाती यादें
ऐसे ही मानव
के संग जीवन
पल में ही छुटके 
बन जाती एक
फसाना ..

Friday 22 December 2017

प्रीत की रीत

क्यूँ सूरजमुखी रोज ही खिल जाते ..
किरणों से जब भी सूरज निकलते ..
सागर बाँहें फैलाए बार बार
अवनि को छूने को मचलते
क्यों चातक स्वाति बूँद को तरसती ..
 
रब की ये अद्भुत पहेली समझ न पाती

नेह गंध में लिपटा भ्रमर
कुमुदिनी के खिलने पर
इर्द गिर्द मंडराया करता ..
रजनीगंधा खुशबू फैलाती
रात सुहानी जब भी आती ...
प्रियतम परवाना के आस में
तिल तिल कर शम्मा है जलती 

मन ही मन हर दिन ये सोचा करती ...

दिल को फिर समझ में आया 
प्रीत का प्याला जिसने पिया
दिल आसक्ति में डूब ही जाता
जिस संग जिसकी प्रीत है होती
उसके परिधि में घुमती रहती

जीवन की डोर उसके ही संग बंध जाती ..

सच्ची प्रीत अनोखी होती
शर्तों में वो  कभी न बंधती
दूरियों से प्रीत कम न होती
मन उसी संग बंध जाता ..
उसके खुशी में ही खुश रहता
अपना सब कुछ सौंप के
मन ही मन आनंदित होती

प्रीत की रीत हमें  यही सिखलाती ..

Thursday 21 December 2017

बुढ़ापे का दर्द

जाने जिन्दगी का
 कौन सा मोड़ है ..
खुशियाँ बाँहों में भरने
 के लिए बेताब है
हर वो चीज मौजूद है
जिसकी चाहत रहती है
फिर भी मन अशांत है,
 धीरे धीरे जिम्मेदारी पूरी
होने को है बच्चे संभल रहे
उसे देख देख के मन भी
बहुत खुश हो रहा है
पर जाने कितने तेजी से 
वक्त फिसलता जा रहा है
लग रहा है अपनों का साथ
जल्दी ही छुटने वाला है
ये काया जीर्ण शीर्ण हो गई
हड्डियों में वो ताकत न रही
चाल भी धीमी हो चली
बस बैठे रहते दूसरे के आश्रित
कोई भी काम न होता तन से
सब कुछ छुट रहा हाथों से ..
ऐसा लगता बुढ़ापे का दस्तक
जल्दी ही आ गया हमपर
बेवक्त का है ये उम्र का दस्तक
बुजुर्गों का दर्द भरा विचार 
हमेशा कौंधता उसके अंतर्मन में

 

Wednesday 20 December 2017

नुक्स

जिसके पीठ पीछे बातें होती है
नजर अंदाज कर देना ही सही
 क्योंकि बातें उसी की होती है
जिसमें कुछ दम होता है ..

अक्सर लोग दूसरे के नुक्स ही
ढ़ूढ़ते रहते हैं, कभी भी अपने
खुद के अंदर कमी न दिखता
सभी अपने को गुणवाण समझते ..

अपनी बढ़ाई तो सभी करते
दूसरे का गर करे गुणगाण
तभी समझो है वो मानव
दिल का अच्छा इंसान ..
 
गर लोगों के बातों में पड़े तो
खुद का ही नुकसान कराते ..
अपना ध्यान सिर्फ खुद के
कर्मों पे देना ही आवश्यक  ..

Tuesday 19 December 2017

दूर का ढ़ोल सुहाना

रिश्ते बनाने की जितनी
दिल में होती चाहत !!
लोग उतने ही शिद्दत से 
निभाते न रिश्ते !!

करीब रहने वाले  हर हमेशा
सामने वालों की कमियों
को ढ़ूढ़ते ही रहता है
रिश्ते भी फीके फीके लगते ..

किसी से  रिश्ते बनाना
जितना आसान होता ..
पर सदा के लिए रिश्ता
निभाना उतना ही मुश्किल
होता ..

लोगों की फितरत होती है
किसी के दिलों में झांकना..
जैसे ही पहुँचते हैं करीब
वैसे ही रिश्ते की मूल्य खो देते ..

चाहे कितने ही गुणी हो कोई
पर नजदीक में रहने वाले को
उसमें सारा अवगुण नजर आता
दूर का ढ़ोल सुहावन लगता ..
 
 

 

Monday 18 December 2017

जख्म

करीब रहकर जख्म
भी गहरी देते हैं,
 मन ही मन सब कुछ
 छिन लेने का इरादा
 रखने वाले कुछ खास
 जीवन में होते जरूर हैं..

एहसास होने न देते
कभी दुश्मन से बढ़कर   
वो हैं आस्तीन के साँप
दिखाते हैं झूठे प्रेम
 मन को भी लेते हैं जीत ..

जब विश्वास हो जाता
तो करते हैं कुठाराघात
मन मस्तिष्क पर और
तोड़ देते हैं ऐसे दिल को
 विश्वास ही सबपे उठ जाता ..

फरेबी लोगों की पहचान
मुश्किल से ही होता
उपर से बने रहते मृदुभाषी
धीर गंभीर बनकर
दिखाते हैं खुद को महान









 

Sunday 17 December 2017

कसौटी

दिल की सुनी कभी कभी
मुश्किलों में डाल देती है
अजीब परिस्थिति उत्पन्न हो जाता
दिमाग से लिया फैसला
दुनियावी झमेले से निकाल लेते हैं..

कभी कभी भावुकता में लिया
फैसला अधर्म के मार्ग की ओर
अग्रसर होने को बाध्य कर देते
सोच समझ कर लिया निर्णय में
हमेशा सत्य की विजय ही होता   

यथार्थ के धरातल पर सबको
स्वार्थ के परे होकर सोच ही
मनुष्य की ऊँचाई को परीलक्षित
करना लाजिमी है सबके हित में ..
कर्तव्य के कसौटी पर खरा उतरने को

धर्म की रक्षा के लिए सबको
सत्य और अहिंसा की पूजा ही
मानवता की जीत सुनिश्चित करता
मानव के दुख से द्रवित होना ही
असलियत में सही पूजा है सबका

Saturday 16 December 2017

कामना

बिटिया के जन्म पर
दिल भारी करने वाले
माता पिता के बुढापा का
सहारा बिटिया ही होती है
देखा है मैंने बहुत सारे
बेटियों को बेटों से भी अधिक
फर्ज निभाते हुए ..
माँ पिता का अभिलाषा
बेटे से ही पूरे होने का
ख्वाब होता  ..
सपने भी दिन रात यही कि
बेटे बुढ़ापे में सेवा खूब करेगा
रखेगा ख्याल हरदम ..
पर हकीकत में बेटियाँ ही
देती है वो खुशी माँ पिता को..
जब भी कभी दुखी होते तो
दौड़ी चली आती हैं बेटियाँ ..
जिम्मेदारियों का एहसास भी
उसे होता बहुत ..
माँ पिता की सेवा तन मन से करती
फिर भी लोग बाग बेटे होने का ही 
कामना करते ..

Friday 15 December 2017

#वो आखिरी मुलाकात पापा के साथ#

मुझे याद है पापा
आपका मेरे घर आना..
दिन भर की थी मेरी थकान ।
पुताई वाले और मिस्त्रियों ने
घर में रेलम पेल मचाया था ।
 फिर भी आपके आगमन से
 आकुलता ने मन को बहुत हर्षाया था।
सब छोड़ छाड़ दौड़ी मैं आपको लेने ..
उस दिन ट्रेन के लेट से हो गई बैचेन ।
इन्तजार खत्म हुआ ..
माँ और आपका हँसता चेहरा
देख कर मैं आनंदित हो गई ।
 पहले चाय बना ले, घर आकर
 कहा पापा ने ..
मैंने चाय बनाया, चाय बहुत अच्छी
बनी, कहा उन्होंने ...
मैं जुट गई पापा के सेवा में
 हो कर मगन ..
थक गए थे पापा, सो जल्दी ही
  सो गए, कर भोजन ..
तड़के सुबह उठ चाय बनाया मैंने
इतने में पापा घर के चारो
ओर से लगे निहारने ..
कहने लगे घर के सारे
डिजाइन हो गए पूरे !
कोई ख्वाहिशें तो नहीं रही अधूरी..
ये कह कर मंद मंद लगे मुस्काने ।
पापा से खूब सारी बातें की
मैं भी हल्की हो गई, अपनी
सारी बताकर उलझनें ।
न जाने क्यूँ लगता है हर बच्चों को
पापा दूर कर देंगे सारी उलझनें ..
माँ पापा के होते सब
बच्चे ही रहते बने ।
ये पता न था ..
आज हाथों से अपने
 खिला रही आखिरी बार ।
रब के अनहोनी से थी बेखबर...
फिर आते हैं, गए कहकर
भाई के घर ।
तिसरे दिन ही चले गए
दुनियाँ को छोड़ कर ।
ये होगी उनसे हमारी,
मुलाकात आखिरी..
दिल अब भी रो रहा
ये याद कर ।
उनसे किया गया अंतिम वार्तालाप
स्मृति पटल से हटने का नाम
ले ही नहीं रहा ..
एक वर्ष से अधिक हो गए
अब भी हर दिन याद आ रहें हैं
रह रह कर ...

    

पहचान

खुले आसमां में
 उँचे उँचे कुलाँचे
 भरकर उड़ना
चाहती है हर औरत ..
इच्छाशक्ति से वोअपने
पंखों को परवाज दे..
मंजिलों को हासिल कर
 नभ में स्वच्छंद विचरती ..
सारे फर्जो को अंजाम
 देकर जग में सुंदर
 अपना मकां बनाती ..
 अपनी काबिलियत
 का झंडा गाड़ सबके
 बीच अपनी उपस्थिति
 का लोहा मनवाती
पर एक दिन स्वयं वो
 अपने पर को कुतरने लगती ..
बच्चों के परवरिश में
इतना खो जाती,
कि घर परिवार के इर्द गिर्द
 ही सिमट कर रह जाती ..
अपने ही बनाए दुनिया की
धूरी में घुमती रहती ..
 बेपनाह खुशियाँ उसे
घर संसार में ही मिलता
हर औरत को बच्चे परिवार से
अधिक खुशियाँ किसी
 चीज में न मिलता ..
अपने ही बनाए पिंजरे में फँस कर
 नभ में उड़ना ही भूल ही जाती ...
जब रह जाती अकेली तो
उड़ने के लिए पंख ज्यों ही फैलाती
जमीन पर गिर जाती ..
 खुद पर अफसोस करती
परवाज भरने को तरसती रहती ...
हर एक औरत से है मेरी ये मिन्नत
अपने पंखों को कभी न कुतरे
खुद की पहचान मिटने न दें ..

 

Wednesday 13 December 2017

वजूद

अजीब हाल  शुकुन ए दास्ता का
 चारों ओर घिर रखा है सन्नाटा ..
सुनसान है दिल का हर एक कोना
रातें फैला रखी है हर तरफ अंधियारा
चाहत तो होती है एक पल शुकुन की ..
पर किसी को इतना भी न मिले एकाकी   ..

सभी के हिस्से में थोड़ा गम थोड़ी खुशी
परमात्मा भर देते हैं आंचल सभी की
जब खुशियाँ मिलती तो छप्पर फाड़ के
आँसू देते तो दरिया भी छलक पड़ता
जाने क्या जिद्द होती है जिन्दगी की
अपने हर रंग से रूबरू कराने की

आँधियों की फितरत होती है जिन्दगी को
तबाह कर सब कुछ तहस नहस करने का
पर अपनी भी जिद्द है तूफानों से लड़ने की
हौसलों के दम से डूबने ना देंगे किस्ती को
संघर्षों के बल पर बिखरने न देंगे वजूद को
इतना तो हिम्मत अभी मुझमें है बाकी..
 

Tuesday 12 December 2017

महामानव

लोग आते हैं चले जाते हैं
कुछ ही ऐसे होते हैं जो
अपने कदमों के निशान
राहों में छोड़ जाते हैं ..

नेकी का देते ऐसे मिसाल
सदियों तक करते हैं याद
 कर जाते जग में कई काम
लेते हैं सभी उनका नाम ..

होते हैं अदम्य साहस इन में
तोड़ते रूढ़िवादियों के बंधन
समाज के उत्थान को
झोंक देते अपने सर्वस्व को
बन जाते महामानव जग में  ..

सामाजिक समानता के
सपने को करते हुए साकार
खुद के अस्तित्व मिटा कर
करते हैं कुरीतियों से दूर
फैलाते हैं जग में उजाला ज्ञान का ..

 

 

Monday 11 December 2017

प्रहार

जग में यूँ तो आते सब अकेले
पर ज्योंहि बितता सबके बचपन
बंध जाते प्रणय सूत्र में दो जिस्म
और बन जाते एक जान ..

जीवन के उँचे नीचे पगडंडियों में
चलते दोनों संभल संभल कर
फिर आती खुशियों की सौगात
 गूँजती किलकारियाँ घर आंगन में ..

परिवार के सुंदर नींव डालकर
खो जाते बच्चों के लालन पालन में.. 
जिम्मेदारियों की व्यस्तता बढ़ती जाती
 मिलता चैन बच्चों की भविष्य सजाकर ..

समय के धारा में बह जाते ऐसे
फिर जाने कितने दूर निकल जाते..
फंस जाते बीच भंवर में ऐसे
किस्मत से ही उससे निकल पाते
किनारे पे आते आते थक ही जाते ..

नियति के क्रूर प्रहार जब पड़ता 
दोनों ही बिछुड जाते एक दूजे से
यादों के साथ ही बाकी जीवन जीते
समझ भी न पाते वक्त फिसल जाता..

प्रहार

जग में यूँ तो आते सब अकेले
पर ज्योंहि बितता सबके बचपन
बंध जाते प्रणय सूत्र में दो जिस्म
और बन जाते एक जान ..

जीवन के उँचे नीचे पगडंडियों में
चलते दोनों संभल संभल कर
फिर आती खुशियों की सौगात
 गूँजती किलकारियाँ घर आंगन में ..

परिवार के सुंदर नींव डालकर
खो जाते बच्चों के लालन पालन में.. 
जिम्मेदारियों की व्यस्तता बढ़ती जाती
 मिलता चैन बच्चों की भविष्य सजाकर ..

समय के धारा में बह जाते ऐसे
फिर जाने कितने दूर निकल जाते..
फंस जाते बीच भंवर में ऐसे
किस्मत से ही उससे निकल पाते
किनारे पे आते आते थक ही जाते ..

नियति के क्रूर प्रहार जब पड़ता 
दोनों ही बिछुड जाते एक दूजे से
यादों के साथ ही बाकी जीवन जीते
समझ भी न पाते वक्त फिसल जाता..

प्रहार

जग में यूँ तो आते सब अकेले
पर ज्योंहि बितता सबके बचपन
बंध जाते प्रणय सूत्र में दो जिस्म
और बन जाते एक जान ..

जीवन के उँचे नीचे पगडंडियों में
चलते दोनों संभल संभल कर
फिर आती खुशियों की सौगात
 गूँजती किलकारियाँ घर आंगन में ..

परिवार के सुंदर नींव डालकर
खो जाते बच्चों के लालन पालन में.. 
जिम्मेदारियों की व्यस्तता बढ़ती जाती
 मिलता चैन बच्चों की भविष्य सजाकर ..

समय के धारा में बह जाते ऐसे
फिर जाने कितने दूर निकल जाते..
फंस जाते बीच भंवर में ऐसे
किस्मत से ही उससे निकल पाते
किनारे पे आते आते थक ही जाते ..

नियति के क्रूर प्रहार जब पड़ता 
दोनों ही बिछुड जाते एक दूजे से
यादों के साथ ही बाकी जीवन जीते
समझ भी न पाते वक्त फिसल जाता..

Sunday 10 December 2017

सेतु

.समन्दर दरिया दिली दिखा
छोटी छोटी नदियों को खुद
में समाती ..
गर इंसा भी बन जाए सहारा 
किसी निर्बल का,करें दुख का
 आत्मसात  ..
तो जग में न होगा कोई अकेला ..
उँचे उँचे इमारतों में रहनेवाले 
 छोटे से छोटे को भी अपने
 बडप्पन से नवाजें ..
तो अमीरों गरीबों के बीच खाई
पे सेतु भी बन जाएगा ..
निरीह इंसा होते बिन सहारा
औकात उसका दो कौड़ी का
इज्जत न किसी के नजर में
गर दे दे उसे जरा प्रेम अमीर
तो उसके पाँव पड़ता न
जमीन पर ..

Saturday 9 December 2017

तुलसी

आंगन में हो तुलसी
 वैद्य समझिये है पास
 तन मन रहता निरोग
सुख शांति का हमेशा
निवास ..

आंगन के कोने में कर वाश
सभी बुरी बलाओं से
करती रक्षा हम सबों का
दूर भगाती दरिद्रता को ..

 तुलसी दल के अर्पण से
 बिष्णु भगवन मुग्ध हो
मुक्त कर देते मानव को
जीवन मरण के बंधन से ..

मृत्यु शैया में जब पड़े रहते
एक दल तुलसी गर मुख में दें    
साक्षात नारायण के दूत
वैकुन्ठ के द्वार में पहुँचाते ..

गर विश्वास न हो धार्मिक
आस्थाओं पर तब भी
आयुर्वेद के गुरु तुलसी
आबोहवा आसपास की  
रखती बरकरार शुद्धता को ..
 

 

Friday 8 December 2017

परंम्परा

परंम्परा कौन संभाले
बेहद कठिन सवाल
आर्थिक विकास की
जरूरतों से विवश
 कट रहे सब जड़ो से ..

अपने संस्कृति के
स्मृति विस्मृत कर
कट रहे हैं लोग गाँव
की मिट्टी से ..

आधुनिकता के अंधी
दौड़ में छोड़ रहे सब
अपने अपने पुरखों के
धरोहर को ..

 परंम्परा न हो जाए विलुप्त 
 पुरानी पीढ़ी आशंकित ,
सूने दलान, उदास आंगन
देख मन है उसका द्रवित ..

सभ्यता और संस्कृति
विकास की आबोहवा
में न हो जाए धूमिल ..
इतनी ही हो हमारी कोशिशें
चाहे जितने भी करें हम उन्नति ..

 

 

परंम्परा

परंम्परा कौन संभाले
बेहद कठिन सवाल
आर्थिक विकास की
जरूरतों से विवश
 कट रहे सब जड़ो से ..

अपने संस्कृति के
स्मृति विस्मृत कर
कट रहे हैं लोग गाँव
की मिट्टी से ..

आधुनिकता के अंधी
दौड़ में छोड़ रहे सब
अपने अपने पुरखों के
धरोहर को ..

 परंम्परा न हो जाए विलुप्त 
 पुरानी पीढ़ी आशंकित ,
सूने दलान, उदास आंगन
देख मन है उसका द्रवित ..

सभ्यता और संस्कृति
विकास की आबोहवा
में न हो जाए धूमिल ..
इतनी ही हो हमारी कोशिशें
चाहे जितने भी करें हम उन्नति ..

 

 

Thursday 7 December 2017

संतुष्टि

अंधविश्वास कैसे
विश्वास में परिणत
होता ये भी आश्चर्य
की बात ..
 कल तक जिसे
समझते फालतू
आज उसी पे यकिन
करने को जी चाहता ..
पंडितों से वेद पुराण
की कथाएँ सुन
जीवन मरण ,
 सांसारिक बंधन
तुच्छ जान पड़ता ..
और धार्मिक कर्मकांड
में ही मन मुक्ति का मार्ग
तलाशता ..
धीरे धीरे स्वयं को
उस पंथ पर बढ़ते
ही पाते ..
सच चाहे जो भी हो
पर इतना तय है
मन जो कार्य कर
संतुष्ट हो, जिससे
मिले शांति वही सही ..
मृत्यु बाद जाने कौन गति ?
 उन्हें गर मिले सदगति
 इन धार्मिक कर्मकांडो से
चाहे हो ये अतिश्योक्ति
फिर भी करने को जी चाहता ..

Wednesday 6 December 2017

आखिरी पड़ाव

आखिरी साँस लेते
लेते भी सब जकड़े
रहते माया जाल में ..
जिन्दगी का मोह
शायद छूट न पाता
उम्र के अंतिम पड़ाव
तक ..

साँस छूटने से पहले
गाय, तालाब और
खेत खलिहान तक
देख वो संतुष्ट होके
चैन से बैठे ही कुछ पल
अचानक बेला आ गई
 विदा होने की ..

शायद आभास उन्हें
हो गया था अब नहीं
बचे हैं मेरे शेष दिन ..
जाते जाते भी कह
गए वो बच्चों को
मेरा दाह संस्कार घर
के ही पास तालाब के
भिन्ड़े पर करना..
अपने परिवार के
संग ही रहना चाहते
थे शायद वो मरके 

Tuesday 5 December 2017

सुहानी यादें

बचपन का कोई मित्र
जब कभी मिल जाता
दुनिया के सारे तनाव भूल,
मन खुशियों से झूम उठता ।

जिस जगह पर हमने
ली पहली किलकारी,
पहली बार जिस धरती
पर लड़खड़ा कर चले
वो यादें ताउम्र भूल न पाते ।

उस घर को देख मन भी
कितना पुलकित हो जाता
जहाँ दादा दादी के गोद में
खेला करते हैं बचपन में ..

उस गलियों को कभी
कहाँ भूला पाते जहाँ ,
दोस्तों के संग खेले हम
जेहन में उसकी यादें 
हमेशा जिन्दा रहती ..

वो स्कूल जहाँ नन्हें नन्हें
कदमों से चलकर गए थे,
वो तोतली जब़ान की गिनती
याद आता प्यार भरी झिड़की
बचपन के शिक्षक शिक्षिका की

Monday 4 December 2017

सतही रिश्ते

दूर से देखो तो सब
बहुत सुहाना लगता
असलियत की पहचान
तो पास जाने पे ही होता
परत दर परत हर एक रिश्ते
की पोल खुल ही जाती
सतही रिश्ते बेमानी लगते ..

दूर से सारी रिश्ते दारियाँ
बखूबी निभाया जाता
रिश्ते भी बड़े मीठे मीठे लगते
 स्नेह और सम्मान भी खूब
एक दूसरे पर लुटाया जाता ...

रिश्ते कागज के फूल के
जैसे बिना खुशबू के होता
जब स्वार्थ की बू आ जाती
छल प्रपंच आ जाने से रिश्ते
दम तोड़ ही देती ..

नजदीक जाओ तो वो गर्मजोशी
ही खत्म हो जाती रिश्ते की
दूर का ठोल सुहावन लगता
ठीक ही बनाया किसीने ये कहावत ..

 

Sunday 3 December 2017

तोड़ गए सबसे नाता

वक्त के बेरहम दस्तक
न चाहते भी आ जाती ..
सबके नयनों को भींगो
कर चले गए वो दिवंगत ..

अब रह गई सिर्फ यादें
अपने मधुर अक्स छोड़
जीवन भर के गम देकर 
चले गए वो तोड़ कर नाता .

 रोते कलपते सभी नातेदार
पत्नी और बच्चे हैं दुख से बेहाल
बह रहें हैं नयनों से अश्रुधार
चले गए सबको तन्हा छोड़ कर

हम सभी के दिलों में वो
हमेशा जीवित रहेंगे
स्वर्ग का द्वार खुला हो
उनके लिए यही है मेरी
अब ईश्वर से कामना
उनके चरणों में भाव भीनी
श्रद्धांजलि अर्पण करती हूँ

Saturday 2 December 2017

शब्दों की लड़ियाँ

ढूंढ रही कुछ ऐसे शब्द
लिखूँ ऐसे जो दिल छू ले
जो हो कल्पनाओं से परे ..

 यथार्थ के स्याही में डूबोकर
भावों के कलम से नेह स्नेह
 का कोई गीत रचूँ हृदय के
कोरे कागज पर ..

बनाऊँ शब्दों की ऐसी लड़ियाँ
जो मिटाएँ दिलों की दूरियाँ
रहे न कोई एक दूजे से रूठकर ..

गढ़ लूँ मैं कोई ऐसे विचार
जो दिलों में अलख जगाकर
करे नए युग का संचार ..

 शब्दों की माला पिरोकर
जोड़ लूँ मन से मन को
नफरतों को मिटाकर
बहा दूँ सबमें प्रीत की धार ..