Wednesday 6 December 2017

आखिरी पड़ाव

आखिरी साँस लेते
लेते भी सब जकड़े
रहते माया जाल में ..
जिन्दगी का मोह
शायद छूट न पाता
उम्र के अंतिम पड़ाव
तक ..

साँस छूटने से पहले
गाय, तालाब और
खेत खलिहान तक
देख वो संतुष्ट होके
चैन से बैठे ही कुछ पल
अचानक बेला आ गई
 विदा होने की ..

शायद आभास उन्हें
हो गया था अब नहीं
बचे हैं मेरे शेष दिन ..
जाते जाते भी कह
गए वो बच्चों को
मेरा दाह संस्कार घर
के ही पास तालाब के
भिन्ड़े पर करना..
अपने परिवार के
संग ही रहना चाहते
थे शायद वो मरके 

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