Sunday 24 December 2017

यादों के झरोखों से (बेटी की विदाई)

बिटिया के शादी के वर्षगाँठ के उपरांत वो सारी बातें याद आ रही है..मैं कितनी गमगीन और परेशान हो गयी थी।जिस बेटी को अपने से एक पल के लिएअलग नहीं की थी अब उसे विदा करना है, ये सोचकर ही मन बैचेन सा हो रहा था ।खैर विदाई तो करनी ही थी ।औरत भी अजीब होती है ..
जब तक उपयुक्त रिश्ते नहीं मिल रहे थे ,तब भी परेशान थी।हमेशा यही सोचती मेरी फूल सी बच्ची के लिए अच्छे
और संस्कारी वर और परिवार मिल जाए ।अब जब सब तरह से योग्य वर और परिवार मिल गया तो मन भी  आनंदित हो उठा ।शादी के तैयारी से लेकर कन्यादान तक मन में किसी और बात सोचने की फुर्सत ही नहीं थी।
मुझे याद है कन्यादान के समय मेरे पति फूट फूट कर रो रहे थे ,परंतु मैं बिलकुल नहीं रोयी ।लेकिन विदाई की घड़ी आते ही न जाने क्यों मन इतना व्यथित हो उठा ,शायद परायी होने के गम को सह नहीं पा रही थी
लग रहा है था मानो मेरे शरीर से दिल को काट कर निकाला जा रहा है, सचमुच विदाई का वो पल बहुत वेदना से भरा हुआ था ।आज भी याद आने पर आँखें नम हो जाती है, मन बहुत भींगने लगता है ।सचमुच बिटिया होती ही ऐसी है... जब जाती है तो घर से रौनक ही चली जाती है ..आती है तो घर भी खिलखिलाने लगता है ..
शादी के बाद हम सब घर से देहरादून आ गए।बिटिया के एक एक समान, कपड़े सम्हालते समय फूट फूट कर रो रही थी ।
घर का एक एक कोने पे उसकी याद को समेट कर कहाँ रखती ..सब जगह खाली खाली लग रहा था ।पहले भी हास्टल पढ़ने के लिए गयी ,परंतु उस समय थोड़े से समय बाद उदासी भाग जाती थी ,लगता छुट्टियों में तो आएगी ही ।लगभग साल भर बहुत उदासी में कटा समय ।डॉ साहब  (मेरे पति) ने बहुत समझाया, तुम्हारे बिना भी घर उदास हुआ होगा,दुनिया की रीत निभानी ही पड़ती है ..
बिटिया ने भी समझाया .."मम्मी मै हमेशा तुम्हारी हूँ ,बस
मेरी जिम्मेदारी बढ गयी है।मुझे दोनों घर सम्हालना है ।
आप खुश रहोगी तो मैं भी खुश रहुँगी।"खैर बिटिया के समझाने पर अब मैं सम्हल गयी हूँ ।बिटिया पढाई के साथ साथ सारे रिश्ते बखूबी निभा रही है ।सब उससे बहुत खुश है ।जीवन उसे हर खुशीयों से नवाजे..

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