Tuesday 31 October 2017

चलो गुमनाम हो जाएँ

खुद की शख्सियत को भुलाए
 शिकवे ना शिकायत किसी से
न डर जमाने की बंदिशों से
सब में अपनी पहचान मिटाएँ
चलो गुमनाम हो जाएँ ..

हम वो करें जो जी में आएँ
न कोई पर्दा किसी से
न ही कोई डर किसी से
आजादी का जश्न मनाएँ
चलो गुमनाम हो जाएँ ..

मुखौटे झूठ के बेनकाब हो जाएँ
फितरतबाज फरेबी रिश्ते से
रूह को झूठ के छलावे से
 हम सबको मुक्ति मिल जाएँ ..
  चलो गुमनाम हो जाएँ ..

मद और अभिमान का चिता जलाएँ
किसी के गम और परेशानियों से
  किसी के दम तोड़ती अरमानों से
  हम सब आशाओं के दीप जलाएँ
  चलो गुमनाम हो जाएँ ...

आओ नेह और स्नेह का पौध लगाएँ
  किसी के उजड़े घरौंदो से
   भूखे प्यासे फकीरी से
  आँसू पोछ मददगार बन जाएँ
ऐसा नेक काम कर मशहूर बन जाएँ
चलो गुमनाम हो जाएँ ..

 

 

Monday 30 October 2017

दस्तक

आज फिर से तेरी
यादों ने दिल पर
 दस्तक दे दिया ..

तन्हाईयों में भी 
मिलन का मंजर
दिखा दिया ..

अपनी बैचेनिंयों का
तुम तक पैगाम
पहुँचा दिया ..

विरानगी में भी
यादों का खंजर
सीने पे चला दिया

सुने दिन सुनी शामें
 इंतज़ार में बिन तेरे
शमां बुझा दिया ..

तुम्हें फुर्सत नहीं
मेरे हालात जानने की
तेरी बेरूखी ने मेरे
गम बढ़ा दिया ..

तुम्हारे आने के आहट से
कोलाहल मन में मेरे
मुझे बेसब्र कर दिया ..

पलकें दरवाजे पे टिकी
हृदय में बजती तारें
धड़कन बढ़ा दिया ...

 

 

Sunday 29 October 2017

सांझ

जीवन के सांझ
कोई संग न साथ
बिन साथी के
 उम्र लगे बोझ ..

किस से करूँ बात
देता न कोई साथ
मन बहुत पीड़ित
जीवन हुए उपेक्षित ..

आई झंझावात कैसी
कर दिया तहस नहस
अस्तित्व ही डगमगा गया
 व्यक्तित्व का न कोई मूल्य..

उम्मीद न थी कभी
भूल जाएँगे सभी
तड़पाएगी बेचारगी
ऐसे लाचार बन जाएँगे..

बनेगी ऐसी हालात
मिट जाएँगी हस्ती
किसी पे बोझ बन जाएँगे
बिन अपनों के तरस जाएँगे

Saturday 28 October 2017

आशीर्वाद

प्रतिभा और खूबसूरती में
 तुम हो बेमिसाल
तुम्हारे घर में होने भर से
गम दूर ही रहता
 तुम्हारी सुरीली संगीत
 कोयल सी मीठी बोल
मेरे घर आंगन को
 खुशियों से महकाती
जीवन के हर लम्हें 
तुम्हारा हो अनमोल
नित्य नए सफलता
की सीढ़ी चढना
जीवन में हर सुख मिले
कभी पीछे मुड़ के न देखना
परिन्दे के तरह उड़ गगन में
अपने पंखों को फलक पे फैला
मंजिल तुझे पुकारती बाँहें फैलाए
 कभी किसी दुखों के साये  
से न हो तुम्हारा सामना
देती मैं तुझे आशीर्वाद
तुमको हमारी उम्र लग जाए

Friday 27 October 2017

आस्था

रवि लालिमा बिखेर
ज्योहि हुए प्रगट
छठ व्रत करने वाली
हुई हर्षित
दिया सूर्य को अर्घ
कर जोड़ सबने
की विनती
हे भास्कर करना
सबका कल्याण ..
और अपने भी
सुख शांति का
मांगा वरदान ..
प्रसाद खिलाकर
हुआ खत्म छठ व्रत ..
हर्ष उल्लास के साथ
सादगी से हुआ अंत
छठ महा पर्व ..
आस्था का पावन
तीर्थ हमारा मन
गर हो विश्वास
पत्थर पूज कर
देव को पा जाते
विश्वास ही संस्कृति
को जोड़ कर रखती  ..
संस्कृति की जड़ें हो
मजबूत और गहरी
रखें  संभाल सब
अमूल्य धरोहर ..

Thursday 26 October 2017

छठ पावन पर्व

डूबते सूरज को
करबद्ध पूजना
छठ महा पर्व की
अनोखी विशेषता
उगते सूरज का स्वागत
भी उतना ही बंदनीय ..
प्रकृति के अनोखे रीत
छठ पूजा कर दोनों का
 मानव देते एक संदेश
जिसका अस्त हुआ हो
उदय भी होना है निश्चित
छठ पूजा सादगी का प्रतीक
गरीब अमीर में न कोई विभेद 
छठ पर्व होता बिन दिखावे का
 प्रसाद या पद्धति सबका एक
पहला त्योहार बिन मूर्ति पूजन 
साक्षात पूजा दिनकर जी की
यही महानता इस पावन पर्व का

Wednesday 25 October 2017

छलनी मानवता की

मन कुम्हला गई
उस बालक को याद कर..
जिसे अंततः निकलना
ही पड़ा घर छोड़ कर..
गोद लेने के शौकीन
माँ बाप तो बन न पाते..
हाँ अपने लिए एक अदद
हेल्पर जरूर ले आते ..
दुनियाँ को दिखाकर
अपने ममता का प्रदर्शन
बखूबी वो कर लेते ..
 किसी के आँखों में
धूल झोंकना या
 बेवकूफ बनाना
भले ही हो आसान
 खुद से आँख मिलाना
 पर नामुमकिन ..
उस अबोध का
मासूमियत छिन ..
कभी तो आत्मा से
आएगी आवाज ..
उसकी चित्कार से
 दहलेगी कलेजा ..
स्वार्थ में अंधे लोग
करते मानवता को छलनी ।
वो नन्हा बचपन
 माँ पापा की शक्ल
उसमें ही ढूंढा होगा ..
उस घर को ही अपना
 घर समझा होगा ..
काम में आना कानी
कर देगा बेघर
निकाला जायेगा
धक्के मारकर
कभी वो सोचा न होगा ..

 
 

Tuesday 24 October 2017

बही खाता

बरसों से संजोकर
रखे कुछ यादगार
लम्हों की आज मैंनें
फिर से निकालकर
रखा है बही खाता ..

वक्त के थपेडों में
धूल झाड़ते सपने
 कुछ अधूरी कुछ पूरी
कुछ मीठे कुछ तीखे
ख्वाहिशों की लगा
न सकी कीमत ..

बेसकीमती पलों
का तौल मिलना
बहुत ही मुश्किल
 कितना ही जोड़
घटाव कर लें पर हिसाब
 बराबर हो न पाता ..

किसी अजीज का
साथ तन्हा वक्तो में
किसी अपनों का
चट्टान के तरह
मजबूत सहारा
मुश्किल घड़ियों में
कर न सकी हिसाब
लौटा न पाई कीमत ..

Monday 23 October 2017

छटपटाहट

मन के भीतर
टटोलती
यादों की
सुगबुगाहट ..
कुरेदती
सूखे पत्ते सी
सरसराट ..
परत दर परत
पलटते हुए
यादों के पन्नों को
खुद में समेटे ..
  कई खट्टे
 मीठे सवाल
करवटें बदलती
न जाने कितने
अनछुए जज्बात ..
बैचेन निगाहों में
तैरने लगता  ..
कई सारे ख्वाब
टूटने के भय
सर्द रातों में भी
पेशानी पे पसीने
की बूँदें
झिलझिलाने लगता  ..
संघर्ष के भँवर
से निकलने की
छटपटाहट ..
याद कर वो मंजर
सिहर सी जाती ..

Sunday 22 October 2017

जज्बा

जिन्दगी जीवंत जियो
   जिन्दा दिली से
जीत लो जीवन के जंग
जन्नत जैसी जहान
    जरूर मिलेगी
गर हो जज्बे दिल में
तो बाधाओं को भी
सहस ही लांघ जाते
पर्वत पे भी चढना
मुश्किल न होता
कभी कभी विकट
परिस्थितियों से
जूझना पड़ता
पर हिम्मत से
जिन्दगी के उलझनें
सुलझा ही लेते ..

Saturday 21 October 2017

भाई दूज

भाई दूज की बेला में
हर बहनों के दिल से
निकलती है यही दुआ
हो हमारे भाइयों का
सौ साल का आयु ..
अपने भाई को आशीस
देकर बांध लेती
स्नेह के बंधन में ..
बिन भाई का हो न
कोई बहना ..
दिल से निकलती
है बस यही दुआ ..
भाई बहन का
धड़कन एक तार से
ही जुड़े रहते..
एक माँ पिता के संतान
एक साथ हँसते खेलते ..
फिर हो जाते हैं कितने दूर
पर कभी भी नजरों से
वो औझल न होते ..
भाई दूज में आकर
भैया स्नेह के बीज
बोकर मन को हरा भरा
कर जाते ..

Friday 20 October 2017

गोवर्धन पूजन

कान्हा गोकुल को
इन्द्र के कोप से
बचाकर तूने दी
अभय वरदान ..

लौटाई मुस्कान नंद नगरी की
मुसलाधार बारिश में
एक उंगली पर
 गोवर्धन पर्वत उठाके ..

गोवर्धन पूजन की
परंमपरा तभी से है बनी
जब से तूने बचायी थी
नगर वासियों की प्राण

प्रेम के वसीभूत तुम
ले लो कुछ सुधी हमारी
हम हैं बड़े अज्ञानी
राग द्वेष से हैं भरे ..

मोह माया की बंधन
छुट रहा न तनिक
 लिप्त है माया से तनमन
उबार लो मुझे हूँ तेरे शरण   ...      

   

Thursday 19 October 2017

मन का मैल मिटा लें दिवाली में

मन से मन का दीप जला लें
 प्यार  मुहब्बत का गीत गा लें
दीपक बन ज्ञान का ज्योत जगा लें
दिल के अंधेरों को दूर भगा लें
दीपावली में रब दे सबको खुशियाली ..

रहे न किसी के घर अंधियारा
दिवाली की रौशनी में नहाए सारे
मिटा कर मन के तिमिर को
नव प्रकाश से भरे जीवन को
दीपावली में दे रब सबको खुशियाली..

दिलों से दिलों की दूरी न हो
स्नेह के डोर में सब बंधे रहे
दुश्मनों के गले भी मिले प्यार से
भाईचारे के बंधन में सब बंधे रहे
दीपावली में दे रब सबको खुशियाली ..

सफाई घर आंगन के जैसा ही
दिलों में भरे के मैलों की भी हो
शिकायतों की पोटली को बेच दें
रिश्तों के बीच प्रेम कभी कम न हो
दीपावली में दे रब सबको खुशियाली ..

यमदीप

यम को दिप जलाकर
कर लिया गुहार
यमकासूर से
रखना कृपा आप
मेरे घर पर
दूर ही रहना
मेरे अपनों से
जो भी गलती हुई
माफ करना
मेरी भूलों  को
विनती इतनी सून लो
छोटी दिवाली में
आशीर्वाद देकर
लंबी आयु देना
सबको भगवन

Tuesday 17 October 2017

माँ लक्ष्मी देना इतना धन

धनतेरस में धन की
वर्षा माँ लक्ष्मी करना
हर घर रहे खुशियों से रौशन
हीरे मोती भले न देना ..

दोनों हाथों से माँ अपने
कृपा सबपर बरसना
दो जून की मिले निवाला
सबको इतना धन देना ..

हर बच्चों को मिले खिलौने
वंचित न रहे कोई कलम से
रहे न कोई बिन घर का
इतना धन माँ सबको देना ..

रोना न पड़े किसी बाबूल को
बिटिया के शुभ विवाह पर
 माँ भर देना सबकी झोली
बिटिया को करें विदा सम्मान देके..

किसी के हिस्से के धन को
 छिना झपटी करे न किसी से
 कोई भी मरे न भूखमरी से
माँ लक्ष्मी इतना धन देना सबको ..

Monday 16 October 2017

कद्रदान

कुछ एहसास
बिन शब्दों के
दिल में ही कैद
रह जाता ...
उसे समझने की
तुम्हें वक्त नहीं
तुम शायद जान के
भी रहते हो अंजान
या फिर तुम बहुत
आगे निकल गए !
मैं वहीं खड़ी हूँ ..
जहाँ से चली थी ..
आज भी मुझे याद है
कैसे मेरे एक उफ् पे
तुम्हारी सिसकी निकल
जाती थी ..
मेरे दो बूँद आँसू से
तुम पिघल जाते थे
और कैसे मेरे
मनुहार में
पलकें बिछाया करते थे
पर अब तुम्हें
फुरसत ही कहाँ ?
काश वक्त ठहर जाए
एक बार पिछे मुड़ जाए
 आँखों के भाव 
 जैसे पढ़ लेते थे
बिन कहे शब्दों
को गढ़ लेते थे
तुम फिर से यूँ ही
मेरे कद्रदान बन जाओ
यही हसरतें हूँ दिल में लिए ..

 

Sunday 15 October 2017

उम्मीदों की उड़ान

उम्मीद की लालसा ही
जीने की ललक बढाती ..
गर न हो उम्मीद तो
जीवन की कर्मठता
खत्म ही हो जाता ..
जीवन निष्क्रिय बन
 शिथिलता के पंगुपन
से ग्रसित होने की ओर ,
 अग्रसर होने में क्षणिक
 भी न लगता देर ..
सकारात्मक सोच से ही
नभ को छूने की तमन्ना ,
उम्मीद की उड़ान को
नए पंख से नवाजता..
गर हो जज्बे दिल में
चाँद को छूने का तो
 उड़ानों से कैसा ड़र?
 उम्मीद के दामन को
हम कस के थाम लें तो
साजिश न होगी आँधियों की
 जमीं पर गिराने की ..
जीत से मन को
खुशियाँ मिलती है ..
हार से जीवन में
सीख मिलती है ..
और एक नई जीत की
उम्मीद भी मिलती है ..

Saturday 14 October 2017

लक्ष्य

रौशनी की चकाचौंध में
 रास्ते बहक न जाए
 अंधेरों की ओर ..
पाने को उजाला
हमेशा याद रखें
 रातें अंधियारी  ..
रोशनी को  देख
कईयों की आँखें
चौंधियाने लगता ..
होके मदहोश कदम
डगमगा जाता
पड़ता न पग जमीं पर ..
संतुलन के मापदंड
जो बैठा ले मन में..
ऊँचाइयों को देख
कभी उड़े न वो हवा में ..
मन एक चंचल पंछी
जरा सा भी ढील पाकर
ऐंवें ही भटकती फिरती..
हो सामने बड़ा लक्ष्य
तो करनी ही पड़ती
कठिन तपस्या ..

Friday 13 October 2017

गुजर गए जो लम्हे

बड़ी ही लालसा थी मन में
जाने की उस शहर में ..
जहाँ बचपन से लेकर
अल्हड़ यौवन की
दहलीज पार की
और एकबार फिर
जब वहां जाने का
मिला मौका
तो लगी झूमने खुशी के मारे ..
पहँचते ही लगी मैं ढूंढने
पुराने सारे ठिकाने
जहाँ सहेलियों के
संग करती थी मैं
मटर गस्तियाँ..
अरे ये क्या ?
यहाँ तो सब कुछ बदल गया
लुका छिपी के
सारे अड्डे गायब हो गये
बचपन के अठखेलियों के
सारे गायब देख निशानियाँ
मन भी खट्टा सा हो गया
उस जगह बड़ी बड़ी
इमारतें थी खड़ी..
जिस यादों को संजोकर
निकली थी घर से मैं
मिला न तसल्ली देखकर ..
फिर याद आई
एक सहेली की
जिसके साथ स्कूल
जाती थी मैं रोजाना 
देखूँ वो ससुराल में है या
आई हुई है मायका !!
सोचते सोचते उसके
घर मैं पहँच भी गई ..
संयोग से वो मिल भी गई ।
हम बरसों बाद मिल रहे थे !!
हैरानी से एक दूसरे को
देखते ही रह गए ..
खुशी के मारे एक दूसरे के
बाँहों में झूल गए ..
चाय नास्ता के बीच बीच में
बातें भी कर रहे थे ..
बहुत शांत और खुशनुमा माहौल में
हम पुराने दिन को
याद कर हँस रहे थे ..
पर एक ठहराव सा था
माहौल में ..
वो लड़कपन न था
कहकहों में उनमुक्तता न थी 
पहले वाली कोई
बात न बची थी बाकी ..
बहुत गंभीर वो दिखने लगी थी ।
उसके चेहरे पे हरदम मुस्कान
पहले रहता था बिखरा ..
मै कभी नाराज भी रहती
तो भी वो मुस्कुराती रहती
मैंने एक दिन कहा झल्ला कर ..
मैं हूँ दुखी तू हँस रही
उसने कहा क्या करूँ
शक्ल ही ऐसी है !!
रोनी सूरत दिखती
न किसी को !!
पर वो अब वैसी न थी
जो उसमें मैं खोज रही थी ..
शायद लम्हे जो बीत जाते
वो फिर ढूंढने से भी नहीं मिलता
मिलता न कोई
उसकी निशानियाँ ..

Thursday 12 October 2017

अनोखा बंधन

देखा है मैंने कई ऐसे
मिंया बीबी, हर हमेशा
लड़ते झगड़ते आपस में ..
बिन बात के ही उलझते
पर गुस्सा खत्म हो जाता
 कुछ ही देर में ..
कितने ही रूठने मनाने का
चलता है सिलसिला ..
पर दोनों को ये पता इस जग में सिर्फ
वही है अपना कहलाने वाला..
मिंया बीबी एक दूजे पर आश्रित होते
खुश रहते एक दूसरे के बंधन में ..
अनोखा बंधन सा होता उनके बीच में ..
वो जो अकेले रह गए अब !
तड़पते रहते दिन रात 
एक दूसरे के याद में ..
 घर में भरा पूरा परिवार है
सब कुछ तो छोड़ गए
एक तिनका भी नहीं ले गए ..
फिर क्यों कर वो तड़प रहे ..
जिस बच्चों को पालने में
दुनियाँ जहान को बिसरा कर
अपने को अलग थलग करा
आज वही बच्चे क्यों न
मन के खालिपन भरता ..
क्यों आँखें तलाश रही उनकी निंशानियां
हर वक्त राहों में भरने वाले रोशनी
की कमी महसूस होता उनके दिल में ..
ठोकरों से बचाने वाला और
 संभालने वाले हथेलियों को
क्यों याद करते वो हरदम ..
शायद मन को कोई न टटोलता !!
बिना कुछ कहे ही एक दूजे के
मन के हर भाव समझ जाते
एक दूसरे का हर दर्द जान लेते ..
अनकही पैगाम भी पहँचता उन तक 
यही है रिश्ता मियाँ बीबी का

Wednesday 11 October 2017

विश्व बालिका दिवस

विश्व पटल पर बालिकाओं ने
 दिखा दिया वो काम ..
लहराया है ज्ञान और बुद्धियों से
उपलब्धियों का परचम ..
जब भी मौका मिला खुद को
साबित किया ..
असंभव को भी संभव कर दिखाया..
चाँद पर भी पहँचकर सबको
चौंका दिया ..
बचा न कोई क्षेत्र जहाँ उपस्थित
न हो बालिकाएँ
डाॅ ,इन्जिनियर और वैज्ञानिक
से लेकर सेना के पद संभाल
रही है बालिकाएँ ..
हर विधा में अपने हुनर से सबको
रूबरू करवा दिया ..
विश्व में भी बालिकाओं ने खुद के लिए
ताली बजवाया..
बालिकाओं को मान सम्मान देना
है सर्वोपरी ..
उसके बिना ना चल सकता परिवार,
होती हर घर की वो धूरी ..
कुछ मनचले आते न बाज अपने
हरकतों से ..
इज्जत को तार तार करने को निःसहाय
 जान मौके के रहते तलाश में ..
करो न बालिकाओं का अपमान
संभल जाओ शैतानों ..
 बन माँ दुर्गा और काली तेरी मिटा
देगी ये हस्ती,
मिलेगा ना तुझे एक टुकड़ा कफन
आएगा न चिता पे कोई रोने ..
होने न पाए किसी बच्ची का अपमान
सबका हो यही कर्तव्य ..
विश्व बालिका दिवस की तभी है सार्थकता ..

Tuesday 10 October 2017

प्रवाह

सुंदर जीवन बहती दरिया
नित्य नए गंतव्य की ओर
पाने को मंजिलें, रूके नहीं
खुशियों से करें प्रवाहित निरंतर ..
जीवन पथ हो कितने ही दुर्गम
सूझ बूझ से हो जाते हैं सुगम ..
गर कहीं ठहर गई हो जिन्दगी
तो रूके जल जैसे भर जाए गंदगी..
रूके जल में मछलियाँ भी 'जी'
कहाँ पाती ?
वैसे ही मन के भीतर निराशा की
'बास'आ जाती ..
रूकावट न आए जीवन गति में
बना रहे प्रवाह जीवन धारा में,
हो हमारी ऐसी ही कोशिशें..
सकारात्मक सोच से ही मिलती
है खुशियाँ ..
नकारात्मकता से बना लें खुद
से दुरियाँ ..
 गर इरादों में हो बुलंदियाँ
तो रोक न सकेगी दुश्वारियाँ ..
जीवन के मधुर पल रखें संभाल कर
ये जीवन न मिलती फिर से दुबारा ..

Monday 9 October 2017

ततबीर

मनुज बेसक अपनी जिन्दगी
तुम चाँद सितारों से भर लो
पर किसी के जिन्दगी में कभी
भूल से भी नअंधियारा फैलाओ
पथ में न ही उनके शूल बिछाओ

जाने क्यों जल्दी जल्दी में है सब
बिन परिश्रम उपलब्धियाँ चाहता
मेहनत किये बिन सफलता कहाँ
अधिक समय तक टिकाऊँ होता

ततबीर से खुद मंजिल कर हासिल
बना न जीवन में किसी को सीढ़ी
स्वार्थ में किसी का न कर इस्तेमाल
दूसरे के राहों में कभी न बाधा डाल

अपनी विजय  खुद कर सुनिश्चित
बेकार है किसी को हराने की चाहत
अपनी काबिलियत से कर ले उन्नति ..
धूप व बारिश में भी तुम रूक मत

हो सके तो हम दूसरे के बने सहारा
थोड़ी ही सही दें खुशियाँ और प्यार
किसी की आहें कर देती है बैचेन
रूलाकर किसी को मिलता न चैन

Sunday 8 October 2017

करवाँ चौथ

मेरे माथे पे सिंदुर
ललाट पे बिंदियाँ की
चमक रहे बरकरार
 सलामत रहे सजना
 तेरी जिन्दगानी ..
 चाहे रूठने मनाने का
 सजना से कितना ही
 चले सिलसिला ..
पर कहाँ रूकता
 दिल में आवेग !
एक दूजे से रहता
न कोई मलाल ...
मुश्किलों से भरा
जीवन सफर भी
एक दूजे से आसां
बन जाता ..
दिल का ये रिश्ता
सात जन्मों तक
साथ  बना रहे ..
करवाँ चौथ में यही
वर मैं मांगती ..
चाँद!तू मेरे प्रीत की
गवाही बने हरदम
तुझे साक्षी मान
खुद को अर्पण
 किया है अपने
 प्रीतम को ...
 अखंड सुहाग की
तुझसे आशीष मांगती..       
मैं अपने पिया को
हर जन्म के वास्ते
     ऐ चाँद !!
तुझसे हूँ मांगती ..

 

Saturday 7 October 2017

प्लास्टिक युग

प्यार का तराना
प्रपंच से रहे दूर
तभी दिल के तारें
छेड़ती है रागिनि
फिर गूँजित होती
मन बगियन में ..
दिल में हो न कोई
खोट रखें न कोई बैर
तो निर्बाद्ध गति से
बहती है प्रीत की धार..
बनावट के रिश्ते
की उम्र लंबी न होती ..
जल्दी ही अपना
रूप दिखा देता ..
प्लास्टिक का युग
है ये जनाब !
इंसान भी बन
गया है बेजान
प्लास्टिक जैसा
लचीला ..
अब हर चीज नकली
किस पर करें यकिन ..
बड़े किस्मत वाले
को ही मिल पाता
शुद्ध सोना असली  ..

Friday 6 October 2017

निश्फल

दिल की तारें जब जुड़ जाते
तो रिश्ते भी खुल के निखरते ..
एक दूसरे में अहंकार न होता
चीनी पानी जैसे घुल मिल जाते..
 दिवार न होती कोई बीच में
 दूरियों से फर्क न पड़ता प्रीत में ..
रिश्ते नित्य नए परवान चढ़ते
दरारें बढाने की साजिशें
हो जाती है निश्फल ..
रिश्ते में कमजोरियों को भांप
दुश्मनों की सक्रियता बढ़ती ..
कितने ही आए राहों में मुश्किलें
पर दिल की गिरह खुद ही सुलझा लें ..
हल्के न होने दें अपनी गरिमा
तीसरे को आने न दें रिश्ते के बीच में ..
कुछ ही होते हैं जो दूसरे की
खुशियों में होते हैं शरीक
वर्ना लोगों की फितरत होती
घरों में आग लगाने की ..

Thursday 5 October 2017

पूर्णिमा में चाँद

पूर्णिमा में चाँदनी
दूध में आती नहाकर
निर्मल सौम्य रूप
सौंदर्य की अनुपम
भेंट चाँद ले आता 
 जाने कहाँ से ..
मन को लुभा कर
कर देता बिभोर ..
चकोर होके मदहोश
हटती न उसकी नजर
बैरी सजन चाँद पर से...
निर्दयी बादलें जब छुपा लेती
चाँद को अपने आगोश में
कलेजे में एक हूक सी उठती
 विरहन देख तिमिर
 रह जाते मनमसोश कर ...
चाँदनी को साथ लिए
ज्यूँ ही प्रगट होते चाँद
बादलों को चीरकर ..
चाँदनी के शीतलता में नहा
धरती गगन सब झूम उठता
पेड़ पौधों के झूरमूटों से
चाँदनी धरा पे जब फैलती
 बन जाता दिव्य दृश्य ..
पूर्णिमा में चाँद का रूप होता
सचमुच अद्भुत ..

 
 

Wednesday 4 October 2017

इतनी सी ख्वाहिशें

हो जिन्दगी भले ही छोटी सी
पर पहचान हो बहुत बड़ी सी
शिकवे ना शिकायत किसी से
न हो मेरी दुश्मनी किसी से
बस इतनी सी मेरी ख्वाहिशें
जिन्दगी है तुझसे ..
तू देना न मुझे अमीरी इतनी
ऊँचाइयाँ देख गर्दनें टेढ़ी ही रहे
 रास्ते के पत्थरें दिखे भी न
अहं में इतनी चुर मैं न रहूँ
बस इतनी सी मेरी ख्वाहिशें
जिन्दगी है तुझसे ...
नैनों में मेरी इतनी सी नमी देना
दीन दुखिंयो को देख पसीजे मन
आ सकूँ उन सबों के कोई काम
ऐ मालिक इतना काबिल बनाना ..
बस इतनी सी मेरी ख्वाहिशें
जिन्दगी है तुझसे ..
मेरे सजना का साथ रहे हमेशा
आँधी भी जुदा न कर सके हमें
भले ना दे सके वो हीरे जवाहरात
पर अपने प्रीत की छाँव में रखें हमेशा
बस इतनी सी मेरी ख्वाहिशें
जिन्दगी है तुझसे ..

Tuesday 3 October 2017

दिवा स्वप्न

परछाईंयों के संग हम
भाग भाग के थक गये
हरदम साथ रहके भी
पकड़ में न आती कभी ..
ख्वाहिशें मृगमिरीचिका ।

आभास कराती भ्रम का..
सच से वास्ता न होता कोई
दिवा स्वप्न कोरे नयनों का ।
जैसे होता नहीं वजूद कोई
जल के नन्हें बुलबुलों का..
वन के वो फल जो दिखता
अति सुंदर, स्वाद बेकार का 

अद्भुत दृश्य! नभ रंगों से भरा
क्षितिज में मिल रहे गगन धरा
पर होता वहाँ केवल शून्याकार
नयनों को लगता है सुहावना
पास जाओ तो कोरी कल्पना
भ्रम भी है उम्मीद बहुतों का

मोतियों का होता जैसा चमक
ख्वाब लगते हमेशा मनमोहक ..
फलक पर रखी ख्वाहिशें
जमीन पे उतरते ही दम तोड़ देती ..।
हकीकत की जमीं पे देखे ख्वाब
कभी कहाँ बिखरता ठोकरों से  ..।
सत्य  की राह भले कठिन
देना पड़ता सबको इम्तिहान
ख्वाब सच बने,पग हो जमीं पर
सच्चे सपने अवश्य होते पूरे
चाशनी में डूबे झूठ लगे सुंदर
सच की जीत अग्नि परीक्षा देकर ....।

प्रो उषा झा रेणु 
देहरादून@

Monday 2 October 2017

सच्ची श्रद्धांजलि बापू को

गाँधी जयंती सिर्फ खानापूर्ति
उनके सारे चेले मनमानी करते..
जयंती में उनके सिद्धांतों पर
चर्चा कर, उपकृत महसूस कर
खुद का पीठ थपथपाया करते ..
गाँधीजी को फूल चढ़ा,चरखा चला
गाँधी वाद होने का ढोंग भर करते
सच्चाई का मार्ग थाम जिसने
तपस्वी बनाया अपना जीवन..
सादा जीवन उच्च विचार से
जिसने मोह लिया जग को
उनके अपने घरों के बेटे ने ही
लुटिया ही डूबा डाली बदनियती से ..
ले लो अवतार एकबार गाँधी जी
नैतिकता का राह दिखाने को ..
मानवता का जो पाठ पढ़ाया
उसकी स्मृति दिल में अलख जगाने को..
सत्य अहिंसा की हथियार से
जिसने धूल चटाया दुश्मनों को
देश की अखंडता की खातिर
अपनी जान की परवाह न की
घर के बेटे ने ही मार डाला बापू को ..
उनकी कुर्बानी न हो व्यर्थ
सब छोड़ दो अपने स्वार्थ
देश के हीत में सब करो उपाय
कोई भी देश को टूकड़े न कर पाये ..
करें हम प्रण आज रखें स्वच्छ धरा को
भ्रष्टाचार से रखें मुक्त भारत को
देश हीत है सर्वोपरी..
यही सच्ची श्रद्धांजलि बापू  को..

Sunday 1 October 2017

रफ्तार

अजब तेज रफ्तार है जिंदगी का
आगे बढ़ने के ललक में सब पीछे
छूट जाता..

 कुछ पाने की उम्मीद में बहुत कुछ
हाथों से फिसलता चला जाता ..

वक्त बचपन में ही बड़ा बना देता जब
गरीबी की मार जिन्दगी में पडती ..
 
 जरूरतें किसी से पड़ती तो औकात
अपना भिखारी जैसा लगने लगता ..

ना उम्मीदी जिन्दगी की हार का सबब
न बन जाए,इसलिए खुद पे एतवार से
कर दोस्ती..