Wednesday 25 October 2017

छलनी मानवता की

मन कुम्हला गई
उस बालक को याद कर..
जिसे अंततः निकलना
ही पड़ा घर छोड़ कर..
गोद लेने के शौकीन
माँ बाप तो बन न पाते..
हाँ अपने लिए एक अदद
हेल्पर जरूर ले आते ..
दुनियाँ को दिखाकर
अपने ममता का प्रदर्शन
बखूबी वो कर लेते ..
 किसी के आँखों में
धूल झोंकना या
 बेवकूफ बनाना
भले ही हो आसान
 खुद से आँख मिलाना
 पर नामुमकिन ..
उस अबोध का
मासूमियत छिन ..
कभी तो आत्मा से
आएगी आवाज ..
उसकी चित्कार से
 दहलेगी कलेजा ..
स्वार्थ में अंधे लोग
करते मानवता को छलनी ।
वो नन्हा बचपन
 माँ पापा की शक्ल
उसमें ही ढूंढा होगा ..
उस घर को ही अपना
 घर समझा होगा ..
काम में आना कानी
कर देगा बेघर
निकाला जायेगा
धक्के मारकर
कभी वो सोचा न होगा ..

 
 

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