जीवन के सांझ
कोई संग न साथ
बिन साथी के
उम्र लगे बोझ ..
किस से करूँ बात
देता न कोई साथ
मन बहुत पीड़ित
जीवन हुए उपेक्षित ..
आई झंझावात कैसी
कर दिया तहस नहस
अस्तित्व ही डगमगा गया
व्यक्तित्व का न कोई मूल्य..
उम्मीद न थी कभी
भूल जाएँगे सभी
तड़पाएगी बेचारगी
ऐसे लाचार बन जाएँगे..
बनेगी ऐसी हालात
मिट जाएँगी हस्ती
किसी पे बोझ बन जाएँगे
बिन अपनों के तरस जाएँगे
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