विधा- माहिया छंद-
12, 10 , 12 मात्राएँ पंक्तियों की
पहली तिसरी चरण समतुकांत ।
212 वर्जित ।
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तन भी ठिठुर रहा है ।
ऋतु का कहर मचा ।
पिय जी मचल रहा है ।
शीतल सेज रुलाई ।
प्रियतम भूल गए ।
सर्दी अगन बढ़ाई ।
कटती सजन न रैना ।
किससे दुख बाटूँ ।
निस दिन बरसे नैना ।
विरहा दर्द बढाये ।
पिय अंग लगाना ।
देख शिशिर सताये ।
तकती हूँ अब राहें ।
कितने वो बेदर्दी ।
निकली दिल से आहें ।
छुपना पी के बाहों ।
प्रियतम आ जाओ।
महके गजरा बालों।
उर में पुष्प खिलाऊँ ।
उर आंगन गमके ।
कर शृगांर रिझाऊँ।
दमके क्यों मुखड़ा ।
मन संग तुम्हारा ।
दिल में जो प्रीत जड़ा ।
उषा झा देहरादून
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