जिन्दगी कभी नेह की बौछार करती ।
प्रमुदित हृदय में सावनी घटा बरसती ।
छा जाती बहार रोम रोम महक उठता ।
नैनों में नये स्वप्न झिलमिलाने लगते ।।
जिन्दगी कभी इतनी कठोर बन जाती ।
हम ठगे निःशब्द हाथ मलते रह जाते ।
सागर के तट लहरों से थपेड़े खाते
रेत की भाँती तप तप कर बिखर जाती ।।
जाने जिन्दगी कितने ही रंग दिखाती ।
किस्मत की लकीर जब किसी की चमकती
इन्द्रधनुष के सप्त रंग से आच्छादित ।
उमंगों से भरी जिन्दगी मुस्कुराती ।।
आशाओं और विश्वासों के डोर थामती,
कल्पनाओं को हकीकत में ढालती ।
टूटे रिश्ते में जान फूकती जिन्दगी ,
बीज नेह की बो कर मन मरु सींचती ।।
उषा झा देहरादून
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