Wednesday 29 January 2020

सरस्वती वंदना


सकल जगत सुबुद्धि प्रदायिनी , नमामि माँ सरस्वती ।
चीर तमस दो ज्ञान दाहिनी ,  मूढ़ मति बने ज्ञानवती ।
शुचित माँ कलुषित-हृदय भी हों, सर्वत्र, गंगा ज्ञान बहे ।।
सत्य, दंभ से नहीं पराजित , ईर्ष्या द्वेष न हृदय रहे ।।

दूषित सोच का प्रादुर्भाव मम , उर हो कभी नहीं माँ 
चलूँ सुपथ पे, भटकूँ कहीं ना! वर दो हंसवाहिनी माँ ।।
हो प्रेम दया करुणा दिल में ,खत्म भ्रष्ट मनोवृत्ति हो ।
यत्र-तत्र समष्टि वसुन्धरा , मानव कोई न व्यथित हो ।।

विषय विकारों में है लिप्त मन निर्मल शुभ विचार दो ।
वचन झरे,मुख से मीठे ही , कोकिल कंठ दे तार दो ।।
हो अन्याय न संग किसी के, सब तृषा हिय की नष्ट हो ।
वर दे कमल सिंहासिनी माँ! चीर प्रकृति का मंजुल हो ।।

अभिशप्त न हो कोई निर्धन , शिक्षा सबको मुफ्त मिले।
कुरीतियों के प्रतिकार हेतु , यह लेखनी चलती चले ।।
भाव अनुपम विद्यादायनी, रचती रहे यह तूलिका  ।
छंद -सृजन हों सदा पुरुष्कृत, मात दान दे विद्या का ।।

उषा झा देहरादून 

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