Sunday 26 January 2020

मन के भीतर कोलाहल

भीतर मन के कोलाहल है, कलयुग आ गया घोर है
देख आज मुरझाया मन है ,, नैन भींगोएँ कोर हैं  ।।
कुत्सित पापी घूम रहे हैं,  बदले अपना रूप सभी  ।
नहीं सुरक्षित दिल के टुकड़े, कैसा आ गया दौर है।। 

कोमल जान जुर्म नर ढाता, अब दुख नहीं हमें सहना ।
दंश चुभाते प्रतिपल मन को, धीरज नहीं हमें धरना ।।
बना खिलौना नारी जीवन, शक्ति रूप तू समझ उन्हें ।
नर  ने जीवन  खेल बनाया ,,अब प्रतिकार हमें करना ।।

जीवन के पधरीले पथ पर अब, तुमको बढ़ते जाना है ।
घना घिरे तम चाहे हो पथ पर , पार तुम्हें ही जाना है  ।।
कठिनाई में भी खुद हीअपनी, प्रशस्त करना मंजिल को ।
सूर्य के प्रकाश से एक दिन तो, जिन्दगी जगमगाना है ।

उषा झा देहरादून 

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