Saturday 18 January 2020

कान्हा का रूप अनूप

विद्या:- वर्ष छन्द- वार्णिक
वृहती जाति
मगण, तगण, जगण,
222  221  121

कान्हा पे राधा निसार ।
दोनों ने खोले  उर द्वार ।।
नैना  खोये हैं  अभिसार  ।
भोली राधा दी अधिकार ।।

 कैसी थी वो मोहित नार ।
दौड़ी बंसी को सुन धार ।।
भूली  राहें,  हे   करतार  ।
थामे कान्हा के पतवार ।।

भाये  कान्हा को अनुराग ।
खेले गोपी माधव फाग ।।
मीठा मीठा, प्रेम अपार ।
 देखो छेड़े  हैं उर तार ।।

कान्हा के देखे  ब्रज  रास ।
कैसी माया ! नैनन प्यास ।।
गोपी राधा थी कुछ खास ।
झूमे  गाये पी  बहुपास   ।।

नैनों की आशा अब श्याम  ।
गोपी की चारों  बस धाम  ।।
बंधे जन्मों, है दिल याद ।
सच्चे रिश्ते ही  बुनियाद  ।।

लीला धारी के नव रूप ।
कान्हा राधा नेह अनूप  ।।
काली रैना वे मदहोश  ।
कान्हा नाचे हैं मन जोश  ।।
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उषा झा देहरादून 










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