Friday 10 November 2017

तुम बिन जीवन कैसे कटे

तुम्हारे होने का आहट
एक काल्पनिक एहसास
जबकि तुम बहुत दूर हमसे
 लगता हर ओर सन्नाटा
 मन जैसे सिमटा सिमटा
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..

याद कर वो मुस्कुराहट
लगता वो लम्हें आए लौट
खामोशी जाती मिट
खुशियाँ आती लौट
मन दुखी सा लगे जब भ्रम टुटे
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..

रात्रि कालिमा हमें डराती
आहट किसी के कदमों के लगे
डरावने सपने आते विचित्र
कल्पनाओं में हमेशा विचरती
यादें मन को कर देती द्रवित
तुम बिन जीवन कैसे कटे ..

यादों का पहरा हरवक्त होता
आस पास किसी का न साथ
अकेलापन ही अब मेरे साथी
सूनापन में ऐसे घिरे मन
जैसे चाँद छुपे बदलियों में घने
तुम बिन जीवन कैसे कटे  ..

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