Saturday 25 November 2017

संकीर्ण सोच

उस दिन पड़ोस के घर में
बड़ी उथल पुथल मची थी
ननकी के विवाह पक्की
करके उसके पापा आए थे
लड़का बड़ा संस्कारी है
कभी दुखित न रहेगी ननकी
 सबको उसकी माँ समझा रही थी ..
लड़के वाले ने कुछ भी नहीं मांगा
घर से थोड़ा कमजोर है
करनी पड़ेगी हमें मदद ..
बड़े उत्साह से सम्पन्न हुई शादी
अब ननकी बुझी बुझी सी रहती
किसी से कुछ भी न कहती
ससुराल में रूपयों की दिक्कत थी..
ननकी पढ़ने में होशियार थी
पर विवाह में लड़का खोजना
मुश्किल न हो जाएँ सो
पढ़ाई भी अधिक नहीं कराया ...
शादी के बाद पापा मम्मी ने
भी हाथ खींच लिया अपना
दिल पे ननकी को बहुत ठेस लगी
सोचती वो क्या मैं संतान नहीं
अपने माता पिता की
बेटों को इतना पढ़ाया
फिर संपत्ति भी उन्हीं की
मुझे न इतना पढ़ाया जो
अपने पैरों पे खड़ी हो सकुँ
न ही अच्छे घर में शादी कराई
अगर दहेज न ले लड़के तो
कोई फर्ज नहीं माता पिता का ..
क्या लड़की को जल्दी जल्दी
निबटाकर हाथ पाँव धो ले उससे?
क्या ये संकीर्ण सोच नहीं बेटी के प्रति?
यही बराबरी का हक है बेटे बेटी में ..

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