Thursday 2 November 2017

सृजन

परिन्दों की तरह
तिनके तिनके से
नीड़ बनाया ..
छोटे छोटे चूजे आए
अपने हिस्से के दानें
उसको चुगाया ..
बनाने को स्वावलंबी
क्षितिज में कुलाँचे
भरना सिखाया ..
पंखों में ज्योंहि उसे
 जान आया ..
उड़ गया गगन में
बनाने को खुद का
गंतव्य नया ..
चूजों से बिछुड के
परिन्दें तन्हा रह गए ..
मायूस हो के भी वो
चूजों के उड़ानों से
मुस्कुराया ..
बंधे हैं सभी फर्ज से
स्वार्थ से ऊपर कर्तव्य ..
जीवन का यही नियति
सृष्टि सृजन का यही रीति
धरती हमेशा ही देती
वैसे ही होते मात-पिता ..

No comments:

Post a Comment