अपना वो सुन्दर सा गाँव
जहाँ अपना प्यारा परिवार
रहते थे वहाँ सब मिलकर
सबका आंगन और दलान
भी एक ही हुआ करता था ..
कोई आयोजन होता तो सब
हिल मिलकर कर लिया करते ,
अपने पराये में न कोई विभेद
बड़े से बड़े काम भी निबट जाता
आंगन और दलान जो खुल्ला था ..
अबकी बार गए जो गाँव तो
लगा बहुत अजीब वहाँ का
रूप ही बदला बदला था ..
सबके मन में अब न था वो प्रेम
आंगन और दलान के बीच में
दिवारें जो पड़ गई थी ..
सब अपने में ही सिमट गए थे
पहले जैसी आत्मियता न दिखती
मानों दिलों में धूल सी जम गई हो
सबों के घरों में आना जाना भी
बहुत कम हो गया था ..
शायद गाँव को शहरी हवा लग गई थी ..
No comments:
Post a Comment