जिन्दगी बन जाता मजाक
वक्त जब कुछ इस कदर
दो राहों पे खड़ा करे लाके
मुफलिसी सबब बन जाती
खुद के तमाशा का ..
हर ओर दिखता गिद्ध दृष्टि
खा जाने वाली निगाहें लोगों की
जो चुभ जाता अंदर तक
एक नंगा सच समाज का ..
जग में निः सहाय अबला का
होता न कोई भी सहायक
गरीबी लाचारी में देते न साथ
उठाते लोग फायदा दुखिया का ..
यूँ तो बनते हैं लोग सिद्धांतिक
बड़ी बड़ी दलिलें देते मानवता का
तो चेहरे से नकाब ही निकल जाता
जब अवसर आता कुछ करने का..
गजब रीत होता संसार का
जब हो परिपूर्ण हर ओर से
तो घिरे होते हरदम अपनों से
सब छोड़ देते साथ पड़ती मार वक्त का
समाज के दोहरी मानसिकता गजब का..
No comments:
Post a Comment