Friday 3 November 2017

स्मृति

सन्नाटे को चीरती 
पपीहे की मधुर तान
कर गई मुझे झंकृत
जेहन में लगी उभरने
कई मधुर स्मृति ...
जज्बातों के कई
अनछुए क्षण
मायूस कर गए..
एक एक लम्हें
तुम्हारे साथ बिताए
चल चित्र के तरह
स्मृति पटल पर
सजीव हो गया ..
हाथों में हाथ लेकर ..
वो बगीचे का सैर
या चाँदनी रातों में
घंटों चाँद को निहारना
 कितने सुकून भरे
पल लगते थे !!
एक तुम्हारे होने भर से ... ।
सारी दिनचर्या होती
तुम्हारे ही आसपास ..
अब खाली दिन
खाली शामें ..
बच्चे भी व्यस्त
खुद के संसार में ..
रह गयी मैं स्मृति
के एक एक तार
को पिरोने ...।।

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