Sunday 25 November 2018

ईमान (गजल)

रदीफ़-  नहीं होती
काफिया- ओती

 बिन प्यार के कभी आँखे ख्बाव बोती नहीं होती      
 जीवन के खूबसूरत लम्हों के ये मोती नहीं होती
 
  तेरे बैगैर कैसे जीते थे ये सोच के मन सिहर उठा
  तुम जुदाई के गम न देते तो आंखें रोती नहीं होती

 सच्चे मुहब्बत से महबूब का दिल भी संभल जाता
 दिलबर को अपनी कभी शिकायते ढोती नहीं होती

 आशिकी करनी और बात निभाना उतना मुश्किल
 बेवफा के दिल कभी पाकीजगी शोभती नहीं होती

  दुश्मन को भी कभी दिखाए न मुश्किल भरे दिन
  साथी हो संग तो साया भी साथ छोड़ती नहीं होती
  
  कोई किसी के जज्बातों के कदर न करते जहां में
  सभी स्वार्थ के शिकार अपना खोजती नहीं होती 

   ईमानदार सजन धोखा न देते अपने प्रियतम को
   परख लें उन्हें,साफगोयी हरदम बोलती नहीं होती

   मुहब्बत का वादा सच्चे प्रेमी ही निभाया करते हैं
   सचमुच झूठों के नैन ईमान की ज्योति नहीं होती

 पाक साफ मुहब्बत रब के रहमो करम से ही मिलता
  नशीब वालों की किस्मत कभी डोलती नहीं होती



 

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