विधा- दोहा
मनमोहन की बाँसुरी,,, बहुत हृदय को भाय
कर्ण प्रिय धुन सुन कामिनी,,सुध बुध सब बिसराय
देख छवि चितचोर की , मुदित हृद गए हार
रूप अद्भुत चकित किये , मोहित हुई अपार
अनुपम छँटा वृन्दावन ,की, छलक रहे नेह
कान्हा रास रचा रहे , आह्लादित सब गेह
चित उन्माद गोपी के, छोड़ दिए घर द्वार
बीती रैन चाँद छुपे , बिखरे सब श्रृंगार
दिखाकर रूप मोहनी , वो कर गए अनाथ
विरह में डूबे गोपी, श्याम छुड़ा गए हाथ
राधा विरह में अधीर , सुन कृष्ण समाचार
दूत उद्धव को भेजा,, जिद्द करे न बेकार
बोले उद्धव गोप से , बहा न तुम अश्रु धार
मिलना बिछुड़ना सबको, जीवन का यह सार
धरो ध्यान घनश्याम के, करते उर उजियार
विराजमान हिय में हैं , झांक हृदय के पार
सुन उपदेश भड़क गई ,,ये कैसा संदेश
भूखी हैं हम प्रेम की ,, छलिया उनका भेष
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