Friday 16 November 2018

कान्हा चितचोर

विधा-  दोहा

मनमोहन की बाँसुरी,,, बहुत हृदय को  भाय  
कर्ण प्रिय धुन सुन कामिनी,,सुध बुध सब बिसराय

देख छवि चितचोर की ,  मुदित हृद गए  हार
रूप अद्भुत चकित किये  , मोहित हुई अपार

अनुपम छँटा वृन्दावन ,की, छलक रहे नेह
कान्हा रास रचा रहे , आह्लादित सब गेह

चित उन्माद गोपी के, छोड़ दिए घर द्वार
बीती रैन चाँद छुपे ,  बिखरे सब श्रृंगार

दिखाकर रूप मोहनी , वो कर गए अनाथ 
विरह में  डूबे  गोपी, श्याम छुड़ा गए हाथ

राधा विरह में अधीर , सुन कृष्ण समाचार
दूत उद्धव को भेजा,, जिद्द करे न बेकार

बोले उद्धव गोप से ,  बहा न तुम अश्रु धार
मिलना बिछुड़ना सबको, जीवन का यह सार

धरो ध्यान घनश्याम के, करते  उर  उजियार  
विराजमान हिय में हैं  , झांक हृदय के पार

सुन उपदेश भड़क गई ,,ये कैसा संदेश
भूखी हैं हम प्रेम की ,, छलिया उनका भेष   

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