विधा- पदपालाकुलक छंद
तज कर मान अभिमान को तू ।
बन जा रे मनुज इंसान तू ।
तन कर्म भट्टी में तपा ले ।
मन को खरा सोना बना ले ।
जीवन पथ मुश्किलों से भरे
दृढ़ निश्चय से हल मिला करे
कठिन तपों से ही मुक्ति मिले
ब जलधि मंथन से,अमृत मिले
चल तू कर्तव्यों के राह पे ।
चाहे कंटक बिछे हो पथ पे ।
हो न तेरा साथी तभी भी ।
तू नेह दीप ले चल तब भी ।
ये जीवन है बहती दरिया ।
इस के भगवन ही खैवैया ।
वो ही करे पार दरिया के ।
जो ठान लेते तैरने के ।
बिन कोशिश मेवा नहीं मिले ।
फल कठिन परिश्रम से ही मिले ।
ये ही गूढ़ सीख जीवन का ।
है क्रोध द्वेष बेमतलब का ।
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