विधा- मुक्तक
नयन बरसते तुम बिन, जाने क्यों भूल गए
विरह की मारी तड़पूँ, तुम कहाँ चले गए
करती हूँ मुहब्बत तुझसे,इस जहां मे अधिक
तुझसे कब हो मिलन,हम अधूरे रह गए
जानूँ न दिल धड़क धड़के क्यों तुम्हें पुकारता
नाम तेरा जपूँ दिन रात,,,याद हमें सताता
क्यों चलता न जोर मुहब्बत पे किसी का
तुम बिन मेरे जीवन को अब कौन संवारता
मुहब्बत में सनम मुझे , तुम धोखा न देना
रखना तू दिल के करीब, पलकों पे बसाना
मेरे लिए तो सबसे नायाब तोहफा है मुहब्बत
तुम बिन अब जीना नहीं, कभी दूर न जाना
प्यार के छाँव में हो जीवन, खुशियाँ चुमें कदम
हर जनम बस तुम ही मिलो, खाओ अब कसम
बिन प्यार के जीवन का,होता न कोई मतलब
प्यार के तराने गाते ही, बीते जीवन हरदम
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