विधा-नवगीत
सुन लो ऐ जग वालों
हूँ तेरे आंगन की कली
बगिया की खुशबू हूँ
मुझसे महकती धरा है
मेरे बिन बेनूर चमन
तेरे गुलशन की हूँ तितली
छूके पंख न कर घायल
मुट्ठियों में कैद न करना
देख के कर ले मुग्ध नयन
मैं हूँ सबकी मुस्कान
स्नेह की धारा मुझसे निकली
मैं ही हूँ झरणों की कल कल
संगीत की धुन मुझसे निकली
हूँ सबकी दिलों की धड़कन
मेरे संग प्रेम अंतहीन
हूँ मैं तेरेकोख की लाड़ली
मुझसे ही है घरों की लाली
करो न मुझको कोई भी नष्ट
वर्ना खत्म हो जाएगी सृष्टि
मेरे दम से दुनिया रौशन
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