विषय- व्यंग्य
वृद्धाश्रम में अभिभावक , बहा रहे अश्रु रोज ।
कलेजे के टुकड़े को, हर पल करते खोज ।
डग मग चले थाम जिसे ,छोड़ा उनका हाथ ।
जीवन के इस मोड़ पे ,छोड़ दिया सुत साथ ।
पाल पोस बड़ा करते , गम से रखते दूर ।
बुढ़ापे का लाठी बन, प्रेम करे भरपूर ।
ममता रूसवा हो गई,,किया ऐसा करतूत ।
ऐसे संतान से भला, रहे सभी बिन पूत ।
भूखा रह पाला जिसे ,रोटी दे वो भीख ।
नेह इतने दिए फिर भी ,याद न रही सीख ।
जीवन की सभी खुशियाँ ,देकर, सूनी है आँख ।
किया न परवाह उनका,गम दे दिए हजार लाख ।
सुत उनके सेवा करे , करते हैं सब आस ।
स्वार्थी संतान के रहे , माँ बाप न अब खास ।
पौध लगा कर आस की, देगा वो फल मूल ।
ले गया कोई ओर फल , एहसास हुआ भूल ।
घर के मालिक बदल गए , हुए बेघर माँ बाप ।
सीढ़ी पे सीढ़ी लगी ,कर्म फल मिलते आप ।
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