विधा- दिग्पाल छंद
संग रहते भाई बहन , मात पिता खुश होते ।
बचपन में हरदम ही , नेह के बीज बोते ।।
बच्चे बने सब सभ्य , उन्होंने ही सिखाया ।
मिल जुलकर प्यार बढ़े,सबको यही बताया ।।
बुरी संगत में पड़ कर,पथ भ्रष्ट बन जाते हैं
शर्म से गर्दन उनका,,,, झुक जाया करते हैं
अच्छी परवरिश से भी,,,, मार्ग से भटक जाते ।
बीज उन्नत होकर न ,,, जाने क्यों सड़ जाते ।
संस्कार जो दिए थे , ले सबके आशीसें ।
बड़े हो कर भूल गए , तोड़े सभी भरोसे ।।
पौध छायादार वृक्ष ,,,, बने आस में जीते ।
नेह से सींचकर भी,,,, खाली आँसू पीते ।
पा कर शोहरत आज,छोड़ दिया उन्हें ही ।
पेड़ पर बैठ कर क्यों, काट रहे जड़ को ही
अस्तित्व मिटेगा नव, पीढ़ी समझ न पाते ।।
जड़ से पृथक हो पेड़, कभी जी कहाँ पाते ।
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